Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1893 of 1906

 

ट्रेक-

२८७

३१३

समाधानः- बाहर खोजता है, सब बाहर खोजता है। तुझे कहीं बाहर आनन्दका या ज्ञानका व्यर्थ प्रयत्न नहीं करना पडेगा, तुझे अन्दरमें-से ही सब प्रगट होगा। तुझे आनन्द और ज्ञान अपनेआप परिणमने लगेंगे। जिसमें थकान नहीं है या जिसमें कोई कष्ट नहीं है, ऐसा जो आत्मा सहज परिणामी है, वह सहज प्रगटपने परिणमेगा। परन्तु उस शुरूआतकी भूमिकामें पलटना कठिन लगता है। अपनी भावना है...

मुमुक्षुः- वचनामृतमें एक जगह आता है कि परसन्मुख जाने-से ज्ञान दब जाता है और अंतर्मुख होने-से ज्ञान खील उठता है, वहाँ क्या कहना है?

समाधानः- ज्ञान परसन्मुख जाता है तो एक ज्ञेयमें अटक जाता है। एक ज्ञेयकी उतनी मर्यादा आ जाती है। जो उपयोग जहाँ अटका, उतना ही उसे ज्ञात होता है। और अपने सन्मुख, स्वसन्मुख होता है, वहाँ ज्ञानकी निर्मलता विशेष होती है। वह एक जगह अटकता नहीं। ज्ञान सहज परिणमता है। वह ज्ञान खीलता है। अंतरमें जाता है वहाँ स्वभावरूप परिणमता है। जैसे-जैसे वीतराग दशा बढती जाय, वैसे ज्ञान निर्मल होता जाता है। ज्ञानका विकास होता है। वह एक जगह अटक जाता है। ज्ञानकी अनन्त शक्ति है वह एक ज्ञेयमें अटक जाती है।

मुमुक्षुः- अटक जाता है कहो कि बँध जाती है ऐसा कहो। उसमें मुक्त हो जाता है।

समाधानः- ज्ञेय-से भिन्न पडता है, वहाँ स्वयं परिणमता है। ज्ञान ज्ञानरूप परिणमता है। ज्ञान स्वयंको जाननेकी क्रियारूप परिणमता है। जैसा है वैसा परिणमता है। गुरुदेवने पूरा मुक्तिका मार्ग, स्वानुभूतिका मार्ग एकदम स्पष्ट किया है। करनेका स्वयंको बाकी रहता है। अन्दर-से जिसे लगी हो, तो पुरुषार्थकी दिशा बदलती है। गुरुदेवने तो एकदम स्पष्ट कर दिया है।

जहाँ अपनी तरफ गया तो उसकी निर्मलता स्वयं परिणमती है। इसमें ज्ञेयमें अटक जाता है। ज्ञानकी महिमा आयी। ज्ञान अपने क्षेत्रमें रहकर, उस क्षेत्रमें जाता भी नहीं, पर तरफ उपयोग रखने नहीं जाता है। स्वयं अपने क्षेत्रमें रहकर सब ज्ञेयोंको जाने। ज्ञेय उसे ज्ञात हो जाते हैं, अपने क्षेत्रमें रहकर। वह ज्ञानकी कोई अचिंत्य शक्ति है। स्वयं अपने क्षेत्रमें रहकर, पूरे लोकके जो ज्ञेय हैं, उसके द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव अनन्त अनन्त ज्ञेय, अपने क्षेत्रमें रहकर, अपनेमें रहकर लोकालोकको जान सकता है। उसके पहले, लोकालोकको जाने उसके पहले उसे स्वानुभूतिमें ज्ञानकी निर्मलता होती है। वह बाहरका जाने या न जाने, परन्तु उसे ज्ञानकी निर्मलता होती है।

मुमुक्षुः- सम्यकज्ञानकी निर्मलता स्व अनुभव होने-से हो जाती है।

समाधानः- ज्ञानकी निर्मलता होती है।