Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

३१८ करना। आचार्यदेव कहते हैं न, प्रकाशका पुँज बादलमें है। लेकिन वह किरण कहाँ- से आया है, उसके मूलको ग्रहण करना। वैसे यह ज्ञानस्वभाव भेदवाला दिखे, परन्तु उसका मूल कहाँ है? उसकी डोर कहाँ है? उसका मूल कहाँ है? उस मूलको ग्रहण करे। अर्थात पर्यायको ग्रहण नहीं करके मूल तत्त्व क्या है, उस तत्त्वको ग्रहण करके, मूल ग्रहण करके मूलका आश्रय करे। और बारंबार उसका भेदज्ञानका प्रयास करे कि ये विकल्पादि मैं नहीं हूँ, उससे मैं भिन्न हूँ और मैं ज्ञायक हूँ। मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसा विकल्परूप नहीं परन्तु ऐसी सहज परिणति। उसे सहज परिणति रूप जीवन ऐसा हो जाय, ज्ञायकरूप जीवन हो जाता है। तो उसे विकल्प छूटे बिना रहते ही नहीं।

ज्ञायकरूप जीवन। ये शरीररूप जीवन नहीं, विकल्परूप, विकल्पकी जालरूप एकत्वबुद्धिरूप जीवन नहीं, परन्तु बारंबार ज्ञायकरूप उसका जीवन हो तो ज्ञायक ज्ञायकरूप परिणमन किये बिना नहीं रहता। ऐसी सहज वस्तुका स्वभाव ही ऐसा है।

मुमुक्षुः- आपने कहा उसमें तो बहुत-बहुत आ जाता है, ऐसे तो सब आ जाता है, परन्तु अभी भी सुनते ही रहे ऐसा लगता है। अंतरमें आत्माको कैसे प्रत्यक्ष करना वह जरा विशेष समझाईये।

समाधानः- उसके ज्ञानलक्षण-से प्रत्यक्ष हो ऐसा है। उसे जो ज्ञानलक्षण ज्ञात हो रहा है, वह कोई तत्त्व है। ज्ञान है वह निराधार नहीं है। कोई तत्त्व है। वह तत्त्व ही ज्ञानस्वरूप है। जैसे यह जड तत्त्व दिखता है, वैसे एक ज्ञानतत्त्व है। जो सहज है।

जो आनन्द सागरसे भरा हुआ, ज्ञानसागरसे भरा हुआ एक चैतन्यतत्त्व है। उसे स्वयं प्रतीत-से नक्की करे कि ये ज्ञान स्वभाव है वही मैं हूँ। फिर उसकी प्रगट प्रसिद्धिके लिये आचार्यदेव कहते हैं कि तेरा उपयोग जो बाहर जा रहा है, मति-श्रुतज्ञान, विकल्प जो तेरा उपयोग बाहर जाता है, उस उपयोगमें समा दे तो उसकी प्रगट प्रसिद्ध होती है।

पहले उसे प्रतीत-से उसका लक्षण पहिचानकर नक्की कर कि ये जो ज्ञानस्वभाव है वह ज्ञानतत्त्व है। ज्ञायकतत्त्व चैतन्यतत्त्व है, जो आनन्दसागर और ज्ञानसागर-से भरा हुआ एक तत्त्व है। उस तत्त्वकी तू प्रतीत करके फिर मति-श्रुतका उपयोग जो बाहर जाता है, उस उपयोगको तू अंतरमें समा दे। उपयोग अन्दर चैतन्यमें लीन कर दे तो उसकी प्रगट प्रसिद्धि स्वानुभूतिरूप होती है। वह जगतसे भिन्न विश्व पर तैरता हुआ भिन्न आत्मा उसे प्रगट होता है। परन्तु उसकी प्रतीति करे तो उसकी प्रगट प्रसिद्धि होती है।