Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 193 of 1906

 

ट्रेक-

०३३

१९३

दो भाग करो तो वस्तु भिन्न-भिन्न नहीं हो जाती। स्फटिक वस्तु कोई भिन्न नहीं हो जाती। उसका लाल रंग कोई अलग वस्तुमें हुआ और सफेद स्फटिक कोई अलग वस्तुमें है, (ऐसा नहीं है)। दोनों एक ही वस्तु है।

मुमुक्षुः- मूल पायेकी बात है।

समाधानः- हाँ। वह एक ही स्फटिक वस्तुमें होता है। स्फटिक एक है और उसके अन्दर लाल रंग और सफेद, दोनों भाग अन्दर ही अन्दर एक ही वस्तुमें होते हैं। एकसाथ हैं।

मुमुक्षुः- एक ही वस्तुके दो अंश है।

समाधानः- हाँ, एक ही वस्तुके दो अंश हैं।

मुमुक्षुः- दो अंश मिलकर एक वस्तु बन जाये ऐसा भी नहीं है।

समाधानः- नहीं, ऐसा नहीं है। वह कोई अंश नहीं, वस्तु है, स्फटिककी जो निर्मलता है वह।

मुमुक्षुः- वह क्या कहा? निर्मलता है वह वस्तु है, अंश नहीं है, यानी क्या?

समाधानः- दो अंश कहा न? अर्थात निर्मलताका अंश और अशुद्धताका अंश। अन्दर जो पडा है, वह कोई एक अंश नहीं है, वस्तु द्रव्य है। ऐसा कहा। अंश यानी वह कोई शुद्धतारूप परिणमित हुआ अंश है ऐसा नहीं है। परिणमित हुआ अंश नहीं है, वह तो शक्तिरूप है। ऐसा कहा। दो भाग है वह बराबर, लेकिन शुद्धतारूप है वह प्रगट परिणमित हुआ अंश है ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- परिणमता अंश नहीं है।

समाधानः- परिणमता अंश नहीं है। शक्तिरूप है। स्वयं ही परिणमता है। वह इसप्रकार परिणमता है कि उसका मूल टिकाकर पर्याय अशुद्ध होती है।

मुमुक्षुः- नहीं तो आत्माको उसका वेदन नहीं होता। यदि वह स्वयं नहीं परिणमता हो तो उसे वेदन नहीं हो सकता।

समाधानः- वेदन ही नहीं होता। तो आकूलताका वेदन ही नहीं होता। यदि द्रव्य और पर्याय ऐसे बिलकूल भिन्न ही हो तो उसका वेदन स्वयंको होता ही नहीं। तो फिर रागका वेदन रागमें, स्वयंको उसका वेदन ही नहीं होता, तो फिर उसे छूटनेकी अपेक्षा भी नहीं है। स्वयं परिणमता हो तो उसे छूटनेकी अपेक्षा रहे। परिणमता ही नहीं हो तो छूटनेकी अपेक्षा कहाँ? रागमें, द्वेषमें, विकल्पमें स्वयं परिणमता है। इसलिये उसे ऐसा होता है कि मेरा स्वभाव निर्मल है, मैं अपनी ओर देखुँ, यह सब आकूलता है। उसका वेदन होता हो तो छूटनेका प्रयत्न है। उसका वेदन ही नहीं है तो फिर छूटनेका प्रयत्न (क्यों करे)? वस्तु ही दूसरी है, तो फिर उसे स्वयंको छूटनेका प्रयत्न