જિસે મોક્ષમાર્ગ પ્રગટ હુઆ હો ઉસકી વાણી નિમિત્ત હોતી હૈ? ઉસ સમ્બન્ધમેં... 0 Play जिसे मोक्षमार्ग प्रगट हुआ हो उसकी वाणी निमित्त होती है? उस सम्बन्धमें... 0 Play
પરસે ઔર રાગાદિસે લક્ષ્ય છૂટતા નહીં ઔર સ્વભાવકી ઓર લક્ષ્ય નહીં હોતા તો ક્યા કરના? 2:50 Play परसे और रागादिसे लक्ष्य छूटता नहीं और स्वभावकी ओर लक्ष्य नहीं होता तो क्या करना? 2:50 Play
અનાદિસે પુરુષાર્થ નહીં કિયા તો પુરુષાર્થ કરનેકો આતા નહીં ? 3:50 Play अनादिसे पुरुषार्थ नहीं किया तो पुरुषार्थ करनेको आता नहीं ? 3:50 Play
આત્મા દિખતા નહીં હૈ, બાહ્યમેં દિખતા હૈ ઇસલિયે બાહ્યમેં મન લગતા હૈ ? 5:20 Play आत्मा दिखता नहीं है, बाह्यमें दिखता है इसलिये बाह्यमें मन लगता है ? 5:20 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી નિશ્ચયનયને મુખ્ય ફરમાવતા હતાં, જ્યારે આગમમાં કયારેક નિશ્ચયનયને મુખ્ય અને કયારેક વ્યવહારનયને મુખ્ય દર્શાવે છે તો બંને જુદા- જુદા કથનો પાછળ જ્ઞાની ધર્માત્માઓનો શું મર્મ છે? તે કૃપા કરીને સમજાવશે. 6:35 Play पूज्य गुरुदेवश्री निश्चयनयने मुख्य फरमावता हतां, ज्यारे आगममां कयारेक निश्चयनयने मुख्य अने कयारेक व्यवहारनयने मुख्य दर्शावे छे तो बंने जुदा- जुदा कथनो पाछळ ज्ञानी धर्मात्माओनो शुं मर्म छे? ते कृपा करीने समजावशे. 6:35 Play
જ્ઞાનીને દ્રષ્ટિમાં આત્મા જ રહે છે તો શું આખો દિવસ ત્યાં જ ઉપયોગ રહે ? 11:35 Play ज्ञानीने द्रष्टिमां आत्मा ज रहे छे तो शुं आखो दिवस त्यां ज उपयोग रहे ? 11:35 Play
(નિશ્ચય-વ્યવહારનું) આવું સ્વરૂપ સમજીએ તો આત્માની તીખી રુચિ કઈ રીતે થાય? 13:55 Play (निश्चय-व्यवहारनुं) आवुं स्वरूप समजीए तो आत्मानी तीखी रुचि कई रीते थाय? 13:55 Play
(તીખી રુચિ) આની સાથે સાથે સત્પુરુષની મહિમા પણ સાથે સાથે આવે? 16:30 Play (तीखी रुचि) आनी साथे साथे सत्पुरुषनी महिमा पण साथे साथे आवे? 16:30 Play
समाधानः- .. आत्माका मोक्षका मार्ग जिसको प्रगट हुआ उसकी वाणी उसकोनिमित्त होती है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- वह वाणी निमित्त नहीं होती।
मुमुक्षुः- इसलिये जेनी-तेनी पासे धर्म सांभळवो ते पात्रता नथी।
समाधानः- जिसकी जिज्ञासा हो वह सच्चे गुरुको पहचान लेता है। इस गुरुका उपदेश मेरे आत्माका कल्याण करेगा। यदि सच्ची जिज्ञासा हो तो अपनेआप पहचान लेता है। ..
मुमुक्षुः- जो प्रत्यक्षमें दिख रहा है कि इस उपदेश देनेवालेको आत्मानुभूति नहींहै, तो उसके उपदेशको नहीं सुनना चाहिये।
समाधानः- वह तो कोई अपेक्षासे बात है। अपने निमित्त होता है तो सच्चे
गुरु मिलते हैं। जिसको नहीं मिलता है.... जिज्ञासु, जिसने गुरुके पास सुना है, अपनी पात्रता प्रगट हुई है, ऐसा कोई
मुमुक्षु-सच्चा मुमुक्षु हो तो समझनेके लिये वह समझता है, परंतु उसको गुरु नहीं मानता। वह तो समझनेके लिये समझता है। सच्चा गुरु नहीं मानना। स्वाध्याय करता है, सच्चा गुरु नहीं मानना। ... बाहरमें सब लालच हो, उसे पात्रता नहीं है।
मुमुक्षुः- उसका उपदेश सुनना नहीं।
समाधानः- उसका उपदेश... सच्चे गुरुसे लाभ होता है। शास्त्रमें आता है, सच्चे गुरुसे लाभ होता है। ऐसे गुरु नहीं मिलते हैं तो साधर्मी एकदूसरेके साथ चर्चा करे, स्वाध्याय करे, विचार करे, ऐसा तो करते ही हैं आपसमें। .. पहचानना और शरीरादि भिन्न है उसे पहचानना। ऐसा कहनेवाले गुरु कौन है, वह ...
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- ... यथार्थमें कौन है वह समझना। व्यवहारसे वक्ता, श्रोता ऐसा चलता है?
मुमुक्षुः- ... वहाँ-से लक्ष्य छूटता नहीं। स्वभावके प्रति लक्ष्य होता नहीं।