Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

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समाधानः- पुरुषार्थ करनेसे होता है। अनादिकी एकत्वबुद्धि है। शरीर सो मैं और मैं सो शरीर हूँ, ऐसा अभ्यास चलता है। उस अभ्यासको तोडना चाहिये। ... मैं तो भिन्न ज्ञायक हूँ, यह शरीर तो जड है, कुछ जानता नहीं। मैं तो भिन्न चैतन्यतत्त्व महिमावंत पदार्थ अनादिअनन्त (हूँ)। बारंबार उसका विचार, वांचन, प्रतीत, दृढता करना चाहिये। मैं तो एक ज्ञायकतत्त्व हूँ। मैं तो ज्ञायकदेव हूँ, यह शरीर तो जड है। शरीर और आत्मा दोनों भिन्न हैं। अनादिसे भिन्न ही है। पुरुषार्थ करना चाहिये।

मुमुक्षुः- .. कभी किया नहीं है तो उसका स्वरूप समझमें आता नहीं।

समाधानः- नहीं किया है तो भी अपना स्वभाव है इसलिये हो सकता है। पुरुषार्थ करके अनन्त (जीव) मोक्ष गये हैं और अनन्त (जीवोंको) भेदज्ञान हुआ है। आत्मा है तो कर सकता है। अपनी अनादिकी भूल चली आती है इसलिये प्रमादके कारणसे नहीं होता है।

गुरुदेव कहते थे, अपनी भूलसे अपनेको पहचाना नहीं। "निज नयननी आळसे, निरख्या न हरिने।' अपने नेत्रकी आलसके कारण आत्माको स्वयं पहचानता नहीं। चैतन्यप्रभुको पहचानता नहीं।

मुमुक्षुः- अपनेको पहचाननेका आपने कहा, तो अपनेको पहचाननेकी किस तरहकी प्रक्रिया अपनायी जाती है?

समाधानः- अपनेको पहचाननेकी क्रिया-ज्ञानस्वभाव है वह सबको जान लेता है। वह जानता है। परको जाननेके लिये वह सब करता है, अपनेको जाननेका प्रयत्न नहीं करता। जाननेका प्रयत्न करना चाहिये। गुरुदेवने बहुत बताया है। शास्त्रमें भी आता है। प्रमाद करता है, रुचि नहीं है, जिज्ञासा नहीं है, परमें एकत्वबुद्धि है, (परमें) सुख मानता है, परकी महिमा आती है, आत्माकी महिमा भी नहीं आती। आत्माकी महिमा करनी चाहिये, आत्माका स्वभाव पहचानना चाहिये, उसका विचार करना चाहिये। बारंबार उसकी रुचि बढानी चाहिये। यह सब करना चाहिये।

मुमुक्षुः- आत्मा दिखता नहीं, माताजी! बाहरका सब दिखता है तो बाहरकी महिमा आती है।

समाधानः- अनादिसे दृष्टि बाहर है इसलिये बाहरका दिखता है। अंतरमें दृष्टि देखे तो अपनेआप दिखाई देता है। दृष्टि बाहर ही बाहर है। दृष्टिको स्वभावकी ओर ले जानी है। आत्मा ऐसा नहीं है कि दिखनेमें नहीं आये। ज्ञानस्वभाव किसको नहीं जाने? सबको जाने। पर जानता है, स्वको नहीं जानता है।

स्वपरप्रकाशक ज्ञान है। ज्ञान तो सबका अनन्त है। स्वपरप्रकाशक है तो सबको जानता है। पुरुषार्थ नहीं करता है तो नहीं जाननेमें आता। अनादिसे परको जाना, आत्माको