Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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जाना नहीं। आत्माको जाननेका प्रयत्न करना चाहिये, तो जान सकता है। भेदज्ञान करना चाहिये। शरीर मैं नहीं, विभावस्वभाव मेरा नहीं है, मैं ज्ञायक हूँ, ऐसा प्रयत्न करना चाहिये।

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! हम हिन्दीभाषी मुमुक्षुओंका यह परम सौभाग्य है कि हम पूज्य गुरुदेवश्रीकी ९७ मंगल जन्म जयंति महोत्सव मनानेका पवित्र अवसर मिला है। यह मंगल महोत्सव हम मुमुक्षुजीवोंमें आत्मार्थीता विकसाकर मोक्षमार्गमें लगाए, ऐसा मंगल आशीर्वाद चाहते हैं।

पूज्य माताजी! पूज्य गुरुदेवश्री निश्चयनयको सदा मुख्य फरमाते थे। और आगममें कभी निश्चयको मुख्य तो कभी व्यवहारको मुख्य दर्शाते हैं, तो दोनों भिन्न-भिन्न प्रकारके कथनके पीछे ज्ञानी धर्मात्माओंका मर्म क्या है, यह कृपा करके समझाइये।

समाधानः- गुरुदेवने तो बहुत स्पष्ट किया है, गुरुदेवका परम उपकार है। निश्चयनय सदा... साधकजीवको द्रव्य पर दृष्टि तो निश्चय सदा मुख्य ही रहता है। साधकदशामें द्रव्यदृष्टि मुख्य ही होती है। इसलिये निश्चयनयको गुरुदेव मुख्य कहते थे। और वस्तु स्वरूप ऐसा है। जो गुरुदेव कहते थे वैसा ही है। परन्तु जो शास्त्रमें आता है कि कभी व्यवहार मुख्य और कभी निश्चयकी बात आये तो उसमें समझानेके लिये होता है। जीवोंको जो अनादिका अभ्यास है, विभावका अभ्यास है इसलिये व्यवहारकी बाहरमें स्थूल दृष्टि है, समझ नहीं सकते। इसलिये समझानेके लिए व्यवहारकी बात करनेमें आये। लेकिन उसमें कहनेका आशय-वस्तु और मुक्तिका मार्ग क्या है, निश्चय पर दृष्टि कर ऐसा कहनेका आशय होता है। जो आत्मार्थी है वह उसमेंसे आशय समझ लेता है। जिसे आत्मार्थीता नहीं होती, वह मात्र व्यवहारको पकड लेता है।

आचार्यका आशय तो निश्चयनय यानी आत्माको ग्रहण करानेका ही होता है। लेकिन जो समझते नहीं, वह मात्र व्यवहार ग्रहण कर लेते हैैं। आचार्यका कथन तो व्यवहारको छोडकर आत्माको ग्रहण करानेका ही आशय होता है। साधकको निश्चय मुख्य और व्यवहार गौण होता है। लेकिन उसे समझानेके लिये व्यवहारसे ऐसा कहनेमें आता है कि "भाषा अनार्य विना समझावी शकाय न अनार्यने।' अनार्यको समझा नहीं सकते। उसकी भाषामें उसे समझानेमें आता है। शास्त्रमें आता है कि आत्मा शब्द कहा। अब, आत्मा किसे कहते हैं, इसका जिसे ज्ञान नहीं है, वह समझ नहीं सकता। इसलिये दर्शन, ज्ञान, चारित्रको प्राप्त हो, हमेशाके लिये प्राप्त हो, वह आत्मा। ऐसा कहनेमें आता है, तब उसे समझमें आता है। इसलिये व्यवहारसे कथन करनेमें आता है। उसे समझानेके लिये। समझाना है आत्मा, ग्रहण आत्मा कराना है। लेकिन व्यवहारका कथन बीचमें आये बिना नहीं रहता। इसलिये व्यवहारसे कथन करनेमें आता है। ग्रहण तो