२१४ मार्ग आ जाता है। एकको समझे तो उसमें सब आ जाता है। आत्माको समझे। स्व- परका भेदज्ञान करे तो उसमें प्रयोजनभूत सब आ जाता है। लेकिन विशेष समझे तो भी वह लाभका कारण है। लेकिन वह सब आत्मार्थ हेतु होना चाहिये। ज्ञान करनेके खातिर अथवा मात्र जाननेके लिये ऐसे नहीं। आत्मार्थ हेतु होना चाहिये। अधिक समझे तो मार्ग निर्मल होता है। मार्ग उसे स्पष्ट होता है। शास्त्रमें उसका आशय बराबर समझे। आचार्यदेवको क्या कहना है, भगवान क्या कहते हैं, आचार्यदेव इसमें क्या कहते हैं, गुरुदेवने क्या मार्ग बताया है, वैसे अधिक-अधिक विचार करके आत्मार्थ हेतु विचार करे तो मार्ग अधिक निर्मल और स्पष्ट होता है। ... मार्ग कैसे अधिक स्पष्ट हो।
श्रुतकी महिमा। गुरुदेवको श्रुतकी महिमा कितनी थी। उनको श्रुतकी महिमा.. आहा..हा...! उस दिन सब आये तब कहते थे न? आहा..हा...! आता था। शास्त्रके एक-एक पंक्तिके अर्थ करे। उनके जैसा अर्थ कोई नहीं कर सकता। और उनकी वाणी। उसमें आ..हा.. आता था, उसमें श्रुतकी उतनी महिमा आती थी।
महिमा करे उसके साथ मार्ग जानना चाहिये। मार्ग जाने बिना आगे नहीं बढा जा सकता। मार्गको जाने कि यह रास्ता है। इसलिये श्रुतका चिंतवन साथ-साथ होता है।
... वैसी उनकी वाणी और जो आहा.. आता था, ऐसा किसीको नहीं आ सकता। वह अंतरमेंसे आता था। तीर्थंकर गोत्र बाँधनेके जो कारण आते हैं, उसमेंसे कोई कारण हो। अभिक्षण ज्ञानउपयोग आदि। श्रुतभक्ति आदि उनको कोई अलग ही प्रकारका होता है। ...
मुमुक्षुः- श्रुतलब्धिको भी कारण कहते हैं?
समाधानः- श्रुतलब्धि तो थी, लेकिन उनको स्वयंको अंतरमेंसे महिमा ही कोई अलप प्रकारकी थी।
मुमुक्षुः- गुरुदेवका विचार तो वह सोलह कारणका बराबर मेल खाता है। षोडश कारण भावना भाय..
समाधानः- हाँ, वह मेल खाता है। .. उनमें दिखाई देते थे।
मुमुक्षुः- मध्यरात्रिमें निद्रामेंसे विचार आये तो उस वक्त शास्त्रके ही आते थे।
समाधानः- शास्त्रके ही आते थे।
मुमुक्षुः- उसी वक्त समाधान कर ले। अथवा सुबह...
समाधानः- जब भी विचार आये शास्त्रके ही आते थे। ... श्रुतको लिखनेका आदि अमुक .. दिये हैं। पुष्पदंत और भूतबलि आदि मुनि कंठस्थ रखते थे। ऐसी कुछ शक्ति होती है। फिर कहा, सब यह रख नहीं पायेंगे,