२१६ स्वयंकी शक्ति अनुसार वैसा शुभ विकल्प आता है। जो अन्दर स्वयंको श्रुतका चिंतवन चलता हो। ताडपत्र पर लिखते हैं। ऐसा शुभभावका विकल्प उनको आता है। इसलिये वह लिखते हैं। स्वयंकी शक्ति और उस प्रकारकी अन्दर स्वयंकी लिखनेकी शक्ति हो, अन्दर ऐसा ज्ञान हो, सब होता है, इसलिये वे लिखते हैं।
... किसीको करणानुयोगमें जाता हो, किसीको चरणानुयोगमें जाता हो, किसीको द्रव्यानुयोगमें। वैसे किसीका अध्यात्ममें उपयोग जाता हो। स्वानुभूतिमें तो सब एक ही प्रकारसे झुलते हैं। और ज्ञानका उपयोग सबका भिन्न-भिन्न प्रकारसे जाता हो। क्षयोपशम भिन्न-भिन्न प्रकारसे काम करता है।
मुमुक्षुः- भावलिंगी मुनि तो बहुत हो गये, फिर भी शास्त्र तो कुछ मुनिओंने ही लिखे।
समाधानः- हाँ, वह तो जिसकी शक्ति हो वह लिखे। शक्ति हो, वैसा प्रशस्त विकल्प आये।
मुमुक्षुः- समस्त निज वैभवसे दिखाऊँगा।
समाधानः- मैं आत्माके वैभवसे दिखाता हूँ। निज वैभवसे दर्शाता हूँ। मुझे अन्दर जो प्रगट हुआ है, वह मैं आपको दिखता हूँ। मेरा वैभव दिखाता हूँ। मैं दर्शाऊँ उसे प्रमाण करना। आचार्यदेव महासमर्थ (हैं), वे कहते हैं, प्रमाण करना। भूल-दोष ग्रहण मत करना। आचार्यदेवकी कैसी शक्ति है, फिर भी ऐसा कहते हैं। ... जगतको उपकार (करने) और स्वयंको प्रशस्त ... सब जगत समक्ष दर्शाया है। जो स्वयंको ज्ञानमें सब वैभव प्रगट हुआ है-आत्म वैभव, सब जगतको दर्शाते हैं।
मुमुक्षुः- श्रुतज्ञान द्वारा जानों या केवलज्ञान द्वारा जानो, आत्माको जाननेका एक ही प्रकार है।
समाधानः- आत्माको जाननेका एक ही प्रकार-श्रुतज्ञान द्वारा या केवलज्ञान द्वारा। उसमें फर्क नहीं है, परन्तु श्रुतज्ञान परोक्ष है और केवलज्ञान प्रत्यक्ष है। उतना फर्क है। कोई अपेक्षासे ऐसा कहते हैं कि श्रुतज्ञान और केवलज्ञानमें कोई फर्क नहीं है। श्रुतज्ञान हो या केवलज्ञान हो, परन्तु प्रत्यक्ष परोक्षका फर्क है। वह सहज विकल्प बिनाका है, केवलज्ञान सहज है। श्रुतज्ञानमें विकल्प साथमें जुडा है। बाकी वस्तु स्वरूपमें कोई फर्क नहीं है। वस्तु स्वरूपका समानरूपसे प्रकाश करते हैं।
मुमुक्षुः- ... मेरे अंतरके वैभवसे यह स्वरूप दर्शाता हूँ, तो तू प्रमाण ही करना। उसमेंसे ऐसा ध्वनि आता है कि तू किस भूमिकामें खडा है, इसलिये तू कोई दलील मत करना, लेकिन स्वीकार कर लेना। जैसे बाप बेटेको कहे कि,...
समाधानः- करुणासे कहते हैं। प्रमाण करना, मैं कहता हूँ, बराबर कहता हूँ