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तू प्रमाण करना। पात्रजीवको कहते हैैं, प्रमाण करना।
मुमुक्षुः- क्योंकि शुरूआतमें तो कहीं न कहीं श्रद्धा करनी पडती है। सिर्फ तर्कसे तो आगे नहीं बढा जा सकता।
समाधानः- कुछ-कुछ परीक्षा करनी होती है, सब परीक्षा नहीं करनी पडती। गुरुदेव कहते थे न, यह मार्ग कोई अपूर्व है। महापुरुष, सत्पुरुषको तूने पहचाना, फिर तू कहे कि मुझे सब बता दो। ऐसे नहीं होता है। फिर तो उसे अर्पणता करनी चाहिये। अमुक परीक्षा करके नक्की किया। फिर सब परीक्षा नहीं करनी पडती।
मुमुक्षुः- भेदज्ञान हो, उसका लक्षण क्या?
समाधानः- भेदज्ञान यथार्थ हो उसका लक्षण तो स्वयंको भेदज्ञानकी धारा वर्तती हो। यथार्थ भेदज्ञान तो उसे अंतरमें भेदज्ञान वर्तता हो। चाहे कोई भी कार्यमें हो, उसे त्रूटि नहीं पडती, अविच्छिन्न धारासे भेदज्ञान चलता है। जागते, सोते, स्वप्नमें सबमें भेदज्ञान (चलता है)। आत्मपदार्थ ज्ञायक.. ज्ञायक ही उसे वेदनमें आता है। यह विभाव उसे गौण होता है और क्षण-क्षणमें एकत्वबुद्धि धारावाही चलती है, वैसे उसकी भेदज्ञानकी धारा चले। धारा चले उसमें स्वयं भिन्न भासित हो। शरीर भिन्न भासे, विभाव भिन्न भासे, सब भिन्न भासित होता है। उसे अंतरमें भिन्न भासे और ज्ञायककी धारा, ज्ञायकका वेदन यानी ज्ञायक उसे प्रतीतमें आता है। ज्ञायक उसे विचार करे इसलिये नहीं, अपितु सहज जाननेमें आता हो। वह भेदज्ञान है। वह जबतक नहीं होता है, तबतक प्रयास करे। बारंबर भिन्न होनेका प्रयास करे। जागते, सोते, स्वप्नमें, खाते-पीते सबमें क्षण- क्षणमें आत्मा भिन्न ही भासित होता है। एक ज्ञायक ही उसे मुख्य रहता है, ऊर्ध्व रहता है। द्रव्य पर उसकी दृष्टि चिपकी रहती है। द्रव्य ज्ञायक पर।
उसे ज्ञान सब होता है कि यह विभाव है, यह स्वभाव है, सब ज्ञानमें होता है। लेकिन धारा तो ज्ञायककी चलती है। लेकिन वह यथार्थ हो तो होता है, सहज। स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हो तो वैसे यथार्थ भेदज्ञानकी धारा (चलती है)। उसके पहले उसका प्रयास करे, जबतक नहीं होता है तबतक।
मुमुक्षुः- प्रयासमें क्या होता है?
समाधानः- उसे बारंबार भिन्न करनेका प्रयत्न करे। लेकिन भिन्न करनेका प्रयत्न करे कब? कि उसे ज्ञायककी महिमा आये तो। बाहरकी महिमा हो रही है, उसे बाहरका महिमावंत लगता है, वैसा अंतरमें ज्ञायक महिमावंत नहीं लगता है। ज्ञायक महिमावंत लगे तो उसे भिन्न करनेका प्रयत्न करे। नहीं तो उसे रुखा लगे। ज्ञायक.. ज्ञायक.. ऐसे बोलने मात्र हो जाता है। उसका कोई मतलब नहीं है। लेकिन उसे ज्ञायक महिमावंत लगना चाहिये। तो उसे भिन्न करनेका प्रयत्न करे।