Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

२२० लिया, तो कहते हैं, मेरा वस्त्र दे दे। ऐसे गुरु बारंबार कहते हैं, तेरा स्वभाव नहीं है। तुम भिन्न आत्मा हो। बारंबार कहे तब यदि जागृत होवे, पुरुषार्थ करे तब जागृत (होता है)। जागृत तो स्वयंको होना पडेगा। वही तो करने जैसा है।

मुमुक्षुः- हमको स्वयंको पुरुषार्थ करना होगा।

समाधानः- पुरुषार्थ करना पडता है। बहुत पुरुषार्थ करे, बारंबार (करे)। ऐसा अभ्यास तो तो दिन-रात चौबीस घण्टे विभाव तो हो रहा है। उसमें एक बार करे, दो बार करे ऐसे तो नहीं होता है। बारंबार उसे भिन्न पडनेकी लगनी होनी चाहिए। बारंबार, क्षण-क्षणमें मैं भिन्न हूँ, भिन्न हूँ, बारंबार (करे)। रट्टा लगाता है, ऐसे रटनमात्रसे नहीं होता है। भीतरमेंसे भेदज्ञान करे तब होता है।

मैं ज्ञायक हूँ, अभेद ज्ञायकको ग्रहण करे। अथवा गुण अनन्त, पर्याय, उसका लक्षण, उसका भेद है वह वास्तविक भेद नहीं है। अनन्त गुण आत्मामें है। गुणभेद, पर्यायभेद पर दृष्टि नहीं करके, मैं ज्ञायक हूँ। आत्मामें अनन्त गुण है, वह जान लेता है कि आत्मामें अनन्त गुण-पर्याय हैं। लेकिन दृष्टि तो एक ज्ञायक पर रखता है। उसका भेदज्ञान करे तब होता है। पुरुषार्थ करना पडता है। ... बल था। सबको भेदज्ञान हो, ऐसे।

... आत्मा तो जाननेवाला है। आहार-पानी सब आत्माका स्वभाव तो है नहीं। पेटमें जाता है, आत्मामें तो जाता नहीं। आहार-पानी... जब वीतराग, केवलज्ञान होता है तब सब छूट जाता है।

मुमुक्षुः- ... छूटनेका प्रयोजन है।

समाधानः- मुनि जंगलमें जाते हैं। आत्माकी क्षण-क्षणमें स्वानुभूति करते हैं। क्षणमें अन्दर स्वानुभूति, क्षणमें बाहर आवे, क्षणमें अन्दर, क्षणमें बाहर आवे। कोई शुभ परिणाम होते हैं। स्वाध्याय, ... ऐसा करते हैं। आहारका विकल्प कभी आवे तो बाहर आवे तो कितनी जिम्मेदारीसे आहार लेते हैं। ऐसे तो लेते नहीं। आहार कहाँ आत्माका स्वभाव तो है नहीं। निराहारी है आत्मा।

... सब तोडने ही बैठे हैं वे तो। ज्ञायकको प्रगट करना, उसमें कितनी जिम्मेदारी है। किसी भी प्रकारकी अपेक्षा नहीं है, निरपेक्ष हैं। आत्माका ध्यान करे। ऐसे भावलिंगी मुनिको दूसरी कोई (अपेक्षा नहीं है)। भावलिंगी मुनि अभी कोई दिखाई नहीं देते हैं। कुन्दकुन्दाचार्य, अमृतचंद्राचार्य भावलिंगी मुनि ...

आहारकी कोई अपेक्षा ही नहीं है। स्वयं स्वयंका लक्षण दर्शाता है कि ये रहा मैं। लेकिन देखता नहीं। ज्ञायक स्वयं स्वयंकी ज्ञायकता द्वारा दर्शाता है कि ये रहा मैं।

समाधानः- ... अंतरकी जिज्ञासा होवे तब होता है। भेदज्ञान करनेसे होता है।