Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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अपनेको जाने। एक अपनेको जाने तो सबको जान लेता है। सबको जाने और अपनेको नहीं जाने तो क्या जाना?

मुमुक्षुः- ग्यारह अंगका जाननेवाला अपने आत्माको नहीं जानता है किया? उसमें आत्म वस्तु नहीं आती है?

समाधानः- आत्मवस्तुको वह वास्तविक नहीं जानता। ऐसे ही जानता है। ऐसे ही पढ लेता है। भीतरमेंसे ग्यारह अंग हो जाता है। आत्मा है, ज्ञान है, पर्याय है, गुण है, सब जान लेता है। मैं आत्मा हूँ, उसका यथार्थ स्वरूप भीतरमेंसे नहीं जानता। ऐसे जानता तो है, यथार्थ नहीं जानता है, भीतरमेंसे नहीं जानता है। आत्मा रह गया, आत्माकी परिणति प्रगट करनी रह गयी, बाकी सब कुछ जान लिया। ग्यारह अंग जान लिया, सब हो गया।

मुमुक्षुः- वह तो मात्र क्षयोपशमज्ञान कहलाया।

समाधानः- वह क्षयोपशमज्ञान मात्र ही हुआ। आत्माको नहीं जाना, मात्र क्षयोपशमज्ञान हुआ।

मुमुक्षुः- माताजी! सर्वार्थसिद्धिके जो देव हैं, वे (तैंतीस सागर) तत्त्व चर्चा करते हैं। तो उसमें बडी जिज्ञासा है कि क्या तत्त्वचर्चा करते होंगे?

समाधानः- अनेक प्रकारकी। द्रव्य-गुण-पर्याय आदि। ज्ञानका समुद्र है आत्मा तो। अनन्त गुण, ज्ञान तो अनन्त-अनन्त भरा है। उसमें अनन्त अपेक्षाएँ हैं, अनन्त धर्म हैं। एकमें सब आ जाता है। एकमें सबकुछ और उसका विस्तार करे तो अनन्त हो जाता है। इसलिये सागरोपम, ३३ सागरोपम तक चर्चा करते हैं। ज्ञान तो अनन्त है। बारह अंग, चौदह पूर्वका ज्ञान होता है तो भी उसकी सीमी-मर्यादा होती है। परन्तु ज्ञानका स्वभाव तो अनन्त-अनन्त है।

भीतरमें मुनिकी भाँति स्थिर नहीं जाते। इसलिये चतुर्थ गुणस्थान रहता है। छठ्ठी- सातवें गुणस्थानकी भूमिका नहीं आती। इसलिये शास्त्र स्वाध्यायमें, चर्चामें सब काल जाता है। चर्चामें, भगवानकी पूजामें, ऐसे निकालते हैं। चर्चामें, भगवानकी पूजामें, भक्तिमें... अनन्त ज्ञानका दरिया है। ज्ञान तो अनन्त-अनन्त है। लोकालोकको जाननेवाला एक समयमें। सब द्रव्य-गुण-पर्यायको, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अनन्त काल गया, वर्तमान, भविष्य अनन्त-अनन्तको जाननेवाला ज्ञान ऐसा केवलज्ञान, उस केवलज्ञानमें अनन्तता भरी है। चौदह पूर्व बारह अंगका ज्ञान भी सीमावाला है। तो भी उसकी चर्चा करते हैं। उसकी महिमा ऐसी होती है श्रुतज्ञानकी तो चर्चा करते हैं।

सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शनमें एक आत्माको जाना है। एक आत्मा जाना उसमें सबकुछ आ जाता है। उसका विस्तार करे तो अनन्त हो जाता है। एकमें सब आ जाता है,