२२४ लेकिन उसका विस्तार करनेसे अनन्त हो जाता है। उसमेें चर्चा चलती है।
मुमुक्षुः- ... तो उस समय गुरुदेव अपने अन्दर चले जाते थे?
समाधानः- भगवानकी महिमा, तत्त्वकी ... वस्तु पदार्थकी उनको महिमा आती थी। इसलिये आहा..हा.. (हो जाता था)। अंतरमें चले जाये तो विकल्प छूटकर (जा सकते हैं)। आहा..हा.. होता था, उसकी उतनी महिमा आती थी। आत्मा ऐसा पदार्थ! ऐसा पदार्थ आत्मा है! ऐसा आत्मा है! ऐसी वस्तु है! ऐसा तत्त्वका स्वरूप है, इसलिये उसको आहा..हा.. होता था। भगवान आत्मा, भगवान आत्माकी महिमा लगती थी। मैं आत्मा भगवान ऐसा हूँ। ऐसा कोई अनुपम पदार्थ आत्मा भगवान है। अपनेको पहचाना। बोलते थे, सब भगवान है। अपने भगवान आत्माको पहचान लेनेसे सब भगवान आत्मा है। बहुत महिमासे बोलते थे। उनको उतनी महिमा आती थी।
वस्तु तत्त्व पदार्थकी, पदार्थके तत्त्वकी उतनी महिमा आती थी, इसलिये आहा..हा.. बारंबार आता था। महिमा आती थी, भीतर नहीं चले जाते, उनको उतनी महिमा, तत्त्वकी बहुत महिमा थी। देखनेवाले तो देखते ही रहते थे कि क्या बोलते हैं कि क्या बोलते हैं? वस्तु पदार्थ कैसा होगा? सबको ऐसा लगता था, पदार्थ कैसा होगा? आत्मा कैसा होगा? गुरुदेव बार-बार आहा..हा.. बोलते थे। उनको बहुत महिमा आती थी।
मुमुक्षुः- तीर्थंकरका द्रव्य..
समाधानः- तीर्थंकरका द्रव्य था। यह समझो, समझो। यह पदार्थ कोई अनुपम है, उसे समझो। बार-बार समझमें आता है? पहले तो ऐसा कहे कि समझमें आता है? समझमें आता है? ऐसा बोलते थे। आहा.. आहा.. ऐसा पदार्थ! ऐसा पदार्थ सब समझो। पदार्थकी महिमा ऐसी आती थी।
मुमुक्षुः- स्वयं ऐसा महिमावंत है।
समाधानः- स्वयं ऐसा महिमावंत है। उसकी महिमा उनको आती थी। महिमासे बोलते थे, भगवान आत्मा। शास्त्रका अर्थ करे तो ओहो..! आचार्यदेव ऐसा कहते हैं! आत्माका स्वरूप आचार्यदेव ऐसा कहते हैं! ऐसा करके आहा..हा.. आता था। आचायाकी, शास्त्रोंकी उतनी महिमा आती थी, तत्त्व पदार्थकी उतनी महिमा आती थी। इसलिये बारंबार आहा.. आहा.. (आता था)। तत्त्व पदार्थकी उनको बहुत महिमा थी। देखनेवाले तो देखते रह जाते। आत्मा क्या पदार्थ होगा? उनकी वाणी कोई अपूर्व थी।
मुमुक्षुः- तात्कालिक...
समाधानः- हाँ, एकदम। गुरुदेव ऐसा बोलते हैं तो आत्मा कैसा होगा? बारंबार आहा.. आहा.. बोलते थे।प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!