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है। स्थापना करता है। स्थापना निक्षेप, द्रव्य निक्षेप, भाव निक्षेप। आक्षेप करता है, भूतका, वर्तमान, भविष्यका। साधनामें नय और प्रमाण दोनों साथमें रहते हैं। निक्षेप तो बीचमें आता है।
मुमुक्षुः- द्रव्य-गुण-पर्यायसे विचारमें आत्माका निर्णय करना और प्रमाण-नयसे निर्णय करना एक ही बात है या दोनोंमें कुछ अंतर है?
समाधानः- दोनों एक है। एकमें आ जाता है। द्रव्य-गुण-पर्याय वास्तविक समझमें आये तो उसमें नय और प्रमाण आ जाता है। द्रव्यका स्वरूप समझे, पर्यायका समझे, द्रव्य मुख्य, पर्याय गौण, अशुद्ध किस अपेक्षासे है, शुद्ध किस अपेक्षासे है यह सब समझे। अपेक्षाकी बात समझनी चाहिये। द्रव्य-गुण-पर्याय कैसे हैं, उसमें कौन-सी अपेक्षा लागू पडती है। उसमें जो अपेक्षाकी बात आती है उसमें नय और प्रमाण आ जाते हैं। द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप समझे तो गुण किस अपेक्षासे है और पर्याय किस अपेक्षासे है, द्रव्य किस अपेक्षासे है, उसमें अपेक्षा समझे तो उसमें नय और प्रमाण दोनों आ जाते हैं। द्रव्य-गुण-पर्याय समझे उसमें साथमें अपेक्षा समझे तो नय और प्रमाण साथमें आ जाते हैं। पर्यायको समझे उसमें साथमें अपेक्षा समझनी चाहिये, तो उसमें नय और प्रमाण आ जाते हैं।
मुख्य करे, गौण करे, द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप समझे। उसमें मुख्य कौन, गौण कौन, उसका क्या स्वरूप, वह सब समझना चाहिये। नय और प्रमाणसे समझना चाहिये। गुणका यह स्वरूप, पर्यायका यह स्वरूप, द्रव्यका यह स्वरूप, उसमें अपेक्षासे समझे उसमेें नय-प्रमाण आता है।
मुमुक्षुः- द्रव्यत्वभाव शक्तिरूप है और शक्तिके सामने दृष्टि रखनेसे अथवा दृष्टिमें शक्ति पर वजन देनेसे पर्यायमें शुद्धता होती है। तो शक्तिमेंसे तो कोई... शक्ति तो उतनी की उतनी संपूर्ण ही रहती है। तो सिर्फ दृष्टि देनेसे ही शुद्धता आ जाती है?
समाधानः- शक्ति तो उतनी की उतनी रहती है, वह सब द्रव्य अपेक्षासे कहनेमें आता है। लेकिन प्रगट होती है, वह पर्याय अपेक्षासे प्रगट भी होती है। शक्ति जैसी है वैसी, उतनी की उतनी रहती है। उसमें कुछ बढता नहीं, उसमें कुछ घटता नहीं, वह सब द्रव्य अपेक्षासे है। परन्तु पर्याय अपेक्षासे एसा कहनेमें आये कि द्रव्यके आश्रयसे शुद्ध पर्याय प्रगट हुई, द्रव्यमेंसे पर्याय प्रगट हुई, सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ, छठ्ठा-सातवाँ गुणस्थान प्रगट हुआ, वह सब कहनेमें आये वह सब पर्याय अपेक्षासे प्रगट भी होता है। शक्ति अपेक्षासे द्रव्य जैसा है वैसा है। परन्तु प्रगट भी होता है, ऐसी एक अपेक्षा पर्यायकी है। कुछ प्रगट ही नहीं होता ऐसा नहीं है। केवलज्ञान प्रगट हुआ, वीतरागदशा प्रगट हुई, चारित्र प्रगट हुआ, चारित्र शक्ति में अनादिअनन्त वैसाका वैसा, जैसा है