२२८ वैसा है, वह द्रव्य अपेक्षासे कहनेमें आता है। परन्तु चारित्रमें मिथ्याचारित्र हो गया, दृष्टि बाहर गयी है, स्वरूपाचरण चारित्र प्रगट हुआ, वह सब पर्याय अपेक्षासे प्रगट होता है। इसप्रकार कुछ प्रगट नहीं होता है, द्रव्यमेंसे कुछ प्रगट ही नहीं होता है, ऐसा नहीं है। पर्याय अपेक्षासे प्रगट होता है, द्रव्य अपेक्षासे जैसा है वैसा है।
मुमुक्षुः- ऐसा ही द्रव्यका अदभुत सामर्थ्य है।
समाधानः- वह अदभुत सामर्थ्य है।
मुमुक्षुः- द्रव्यत्व वैसाका वैसा रखकर, पर्यायमें..
समाधानः- हाँ। द्रव्य-गुणमें वैसाका वैसा रखकर, पर्यायमें हानि-वृद्धि (हो), पर्याय प्रगट हो, पर्याय विभावरूप हुयी, पर्याय स्वभावरूप हुयी, वही पर्याय विशेष प्रगट हुयी, वह सब होता है।
मुमुक्षुः- उसे भी द्रव्यका सामर्थ्य कहनेमें आता है?
समाधानः- वह द्रव्यका सामर्थ्य है।
मुमुक्षुः- द्रव्यकी ही अदभुतता है।
समाधानः- द्रव्यकी अदभुतता है। एक अपेक्षासे द्रव्यमेंसे कुछ प्रगट नहीं होता। पर्यायमेंसे पर्याय (प्रगट होती है), ऐसा कहनेमें आता है। परन्तु द्रव्यमेंसे पर्याय प्रगट हुयी, द्रव्यमेंसे प्रगट होती है, ऐसा भी एक अपेक्षासे है।
जाननेवाला ज्ञान द्रव्यमेंसे प्रगट हुआ, कोई निराधार प्रगट नहीं हुआ है। लोकालोकको जाननेवाला जो ज्ञान था, वीतरागदशा, निर्मलता द्रव्यमें प्रगट हुयी। द्रव्यमें यानी वीतरागी परिणति द्रव्यकी प्रगट हुयी, द्रव्यमें केवलज्ञान प्रगट हुआ। ज्ञान लोकालोककी निर्मलतारूप द्रव्य परिणमित हुआ, ऐसा है।
मुमुक्षुः- ... शक्ति भी रखता है और पूर्णता भी द्रव्य ही प्रगट करता है।
समाधानः- हाँ, द्रव्य ही पूर्णता प्रगट करता है और द्रव्यकी शक्तिमें कुछ हानि- वृद्धि नहीं होती। पूर्ण आनन्द हुआ। उसे सब प्रगट हो गया, फिर दूसरे समयमें क्या परिणमन आयेगा? ऐसा नहीं है। उतना प्रगट हो गया है फिर भी अनन्त-अनन्त है। दूसरे समये उतना का उतना प्रगट होता है। इतना सब द्रव्यमें भरा था, वह सब पूर्ण सामर्थ्य, पूर्ण वीतरागदशा और पूर्ण केवलज्ञान एक समयमें सबमें पहुँच जाये, तीन काल तीन लोक सबमें एक समयमें पहुँच गया, वह तो पूर्ण प्रगट हो गया, अब द्रव्यको क्या करना बाकी रहा? दूसरे समयमें वैसा ही अनन्त (प्रगट होता है)। दूसरे समय उसकी परिणति वैसी ही खडी रहती है। अनन्त काल पर्यंत परिणमे तो भी द्रव्यमेंसे कुछ कम नहीं होता। उतना प्रगट हो गया तो भी।
मुमुक्षुः- अक्षय घडा है।