Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- अक्षय घडा है। उतनाका उतना है। जितना प्रगट हुआ, विकसित हुआ तो भी उतना ही है। शक्तिमें था तो भी उतना ही था। शक्तिमें था उतना वेदनमें नहीं आता था, अब वेदनमें पूर्ण हो गया तो भी दूसरे समय उतनाका उतना है। द्रव्यका ऐसा ही कोई अचिंत्य सामर्थ्य है।

द्रव्यकी अपेक्षा, पर्यायकी अपेक्षा, इन दोनोंकी संधि करके समझना, वह द्रव्यका स्वरूप कोई अदभुत है। मात्र द्रव्य अपेक्षाको अलग करे और पर्यायमें कुछ नहीं है, पर्याय निराधार रह गयी, ऐसा नहीं है। द्रव्यका सामर्थ्य ऐसा है। पर्यायका स्वरूप है वह द्रव्यका ही स्वरूप है। पर्याय कोई अचिंत्यस्वरूप है। अनादिअनन्त रहे और वर्तमान परिणति करे। अनादिअनन्त द्रव्य परिणमता नहीं कोई अपेक्षासे कहनेमें आये, फिर कोई अपेक्षासे (ऐसा कहे कि) द्रव्य परिणमता है। द्रव्यमें तो कोई हानि-वृद्धि होती ही नहीं। द्रव्य तो वैसाका वैसा कूटस्थ कहनेमें आता है। पुनः द्रव्य पारिणामिक है। वह कैसी विरोधी बात है। कूटस्थ है और पारिणामिक है। पारिणामिक है तो परिणमता रहता है। ऐसा कहनेमें आता है कि पर्याय परिणमती है। लेकिन पर्याय कहाँ परिणमती है? द्रव्यमें परिणमती है कि पर्याय बाहर परिणमती है? पर्याय कोई अलग द्रव्यकी भाँति नहीं परिणमती। द्रव्य स्वयं, पारिणामिकभावसे द्रव्य स्वयं परिणमता है। ऐसा द्रव्यका अदभुत स्वरूप है।

मुमुक्षुः- दोनोंकी संधिपूर्वक पूरी बात विचारनी चाहिये।

समाधानः- संधिपूर्वक दोनोंको समझना चाहिये। .. आनन्द आ गया, अब दूसरे समयमें दूसरा आनन्द कहाँ-से आयेगा? एक समयमें गुण पूरा हो गया। अब खत्म हो गया, अब दूसरा कहाँ-से आयेगा? यह कोई ऐसा धन नहीं है। धन घरमें इकट्ठा हुआ, पूरा धन खर्च कर दिया, अब क्या? ऐसा नहीं है। पूरा कहनेमें आता है, फिर भी वह तो वैसे ही द्रव्यमेंसे आते ही रहता है। उसमें खत्म होता ही नहीं। अब द्रव्यकी शक्ति कम हो गयी, अब द्रव्यमें कुछ नहीं है, ऐसा माने तो भी गलत है। द्रव्यमें अनन्त शक्ति है। शक्ति है, निगोदमें जाये तो भी उतनी की उतनी शक्ति है, पूर्ण सामर्थ्य है और प्रगट हो तो भी (उतना ही है)।

प्रगट होनेवाला भी स्वयं है। शक्ति नहीं है ऐसा लगे तो ऐसा नहीं है। प्रगट हो तो भी वैसा का वैसा है।

मुमुक्षुः- ... द्रव्यकी है।

समाधानः- दोनों द्रव्यकी है। क्षणिकरूप परिणमित होनेवाला द्रव्य भी द्रव्यका स्वरूप है। लेकिन उसका स्वरूप समझना कि द्रव्यमें एक भाग ऐसा है कि क्षण- क्षणमें परिणति होती है। दूसरी-दूसरी पर्याय आती है। और उसका एक भाग अनादिअनन्त