Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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भिन्न सदा ज्ञायक ही है। इसमें कहा कि केवलज्ञान और साधकका ज्ञान दोनोंको एक कहा। केवलज्ञान हो या साधकका ज्ञान हो, तो किस अपेक्षासे उस ज्ञानको एक कहा है?

समाधानः- ज्ञान तो सम्यक की अपेक्षासे कहा है। परन्तु केवलज्ञानी तो लोकालोकको जाननेवाले हैं। उन्हें तो पूर्ण ज्ञान प्रगट हो गया है। इन्हें पूर्ण ज्ञान नहीं प्रगट हुआ है। केवलज्ञानीको तो वीतरागदशा हो गयी है। उन्हें रागका तो क्षय हो गया है। द्रव्यदृष्टिपूर्वक उन्हें तो चारित्रदशा होकर केवलज्ञान प्रगट हुआ है। स्व-परको जाननेवाला ऐसा ज्ञान प्रगट हुआ है। स्वयंको स्वयंके स्वभावमें रहकर सहज स्वभावसे सब जानते हैं। लेकिन केवलज्ञानीका ज्ञान और सम्यग्दृष्टिका ज्ञान, सम्यकताकी अपेक्षासे (एक) कहा है। यह जो सम्यक है वह ज्ञायककी अपेक्षासे। केवलज्ञानीका ज्ञान ज्ञायकको जाननेवाला है और सम्यग्दृष्टिका ज्ञान भी ज्ञायकको जानता है। उस अपेक्षासे है। बाकी सर्व अपेक्षासे नहीं है।

केवलज्ञानीका ज्ञान तो प्रत्यक्ष है, सम्यग्दृष्टिका ज्ञान प्रत्यक्ष नहीं है। वह तो स्वरूपप्रत्यक्ष है। सर्व प्रत्यक्ष नहीं है, सम्यग्दृष्टिका ज्ञान सर्वप्रत्यक्ष नहीं है। एक ज्ञायकको जाननेवाला है। ज्ञायककी अपेक्षासे एक कहा है। सम्यककी अपेक्षासे एक कहा है। सर्व प्रत्यक्षकी अपेक्षासे एक नहीं है। अपेक्षा अलग है। दोनों अपेक्षा समझनी।

इनका द्रव्य और उनका द्रव्य समान है। सम्यग्दृष्टिको जो ज्ञान प्रगट हुआ, वह ज्ञायकको जाननेवाला ज्ञान है और सम्यक है, उस अपेक्षआसे कहा है। ऐसे तो सिद्ध भगवानका अनुभव और सम्यग्दृष्टिका अनुभव एक जातिका है, सिद्धकी जातिका (है)। वह तो एक जातिकी अपेक्षासे (कहा)। ये तो अंश है। केवलज्ञानीको तो सर्वांशसे प्रगट हुआ है। अंश अपेक्षासे (है)। यह ज्ञान भी ज्ञायकताको जानता है और सम्यक है, इसलिये। बाकी सर्व अपेक्षासे नहीं है। केवलज्ञानीका ज्ञान तो प्रत्यक्ष है और यह परोक्ष है। उसका अनुभव-स्वानुभूतिकी अपेक्षासे, सम्यककी अपेक्षासे, ज्ञायककी अपेक्षासे कहा है।

मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप वीतरागी दशा प्रगट होती है, उसे भी क्षणिक शुद्ध उपादान कहनेमें आता है। यहाँ त्रिकाली द्रव्यको शुद्ध उपादान लेना है। क्षणिक शुद्ध उपादान जो लिया वह सम्यग्दर्शनकी पर्याय ली।

समाधानः- उसमें तीनों लिया न। सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीनों लिये हैं न उसमें तो। क्षणिक यानी वह तो पर्याय अपेक्षासे लिया है।

मुमुक्षुः- क्षणिक शुद्ध उपादानसे कथंचित सहित हूँ।

समाधानः- कथंचित..?