Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- द्रव्यदृष्टिकी अपेक्षासे पर्यायमें भी अकर्तृत्व कहा है।

समाधानः- पर्यायका जीव अकर्ता द्रव्यदृष्टिसे कहा जाता है। पर्यायका अकर्तृत्व नहीं अर्थात पर्याय है ही नहीं, ऐसा नहीं। पर्यायका जीव अकर्ता और अभोक्ता (है), वह द्रव्यदृष्टिसे पर्यायका अकर्ता (है)। पर्यायका कर्तृत्व है, पर्याय तो है, पर्याय नहीं है ऐसा नहीं। द्रव्यदृष्टिसे नहीं है ऐसा कहनेमें आता है। द्रव्यकी अपेक्षासे। पर्यायकी अपेक्षासे तो कर्तृत्व-भोक्तृत्व है। द्रव्यदृष्टिसे अकर्ता-अभोक्ता। द्रव्य और पर्यायको अभेद करो तो पर्यायका कर्ता-भोक्ता द्रव्य है। पर्याय निराधार लटकती है और द्रव्य निराधार लटकता है, ऐसा नहीं है। पर्याय द्रव्यके आधार बिना निराधार होती है और द्रव्य कहीं दूसरी जगह रह जाता है, ऐसा नहीं है।

आम है, तो आमका रस अलग रह जाता है, रसकी पर्याय और आमका रंग दूर रहता है, और आम भिन्न रहता है, ऐसा नहीं है। आमका रस, रूप सब मिलाकर आम है। लेकिन उसके लक्षण भिन्न-भिन्न करो कि रस ऐसा है-खट्टा-मीठा रस, हरा- पीला आम, इसप्रकार उसके रंगको लक्षणभेदसे भिन्न करो तो उसे भिन्न कह सकते हैैं और आमका पूरा पिण्ड लो, इसप्रकार भिन्न है। आम, रसका कर्ता नहीं है, रसका कर्ता रस है, आम भिन्न है। ऐसा अपेक्षासे कह सकते हैं। उसे अभेद करके कहो तो आम ही रसरूप है, आम ही गंधरूप है, आम ही रंगरूप है, आम ही है।

इसप्रकार द्रव्य-पर्यायको अभेद करके कहो तो द्रव्य ही स्वयं अशुद्ध पर्यायरूप परिणमता है, द्रव्य स्वयं अशुद्ध पर्यायका कर्ता है, द्रव्यदृष्टिसे उसका कर्ता नहीं है। उसे अभेद करके कहो तो उसे ऐसा भी कह सकते हैं और द्रव्यदृष्टिसे कहो तो उसका वह कर्ता (नहीं है)।

द्रव्यदृष्टिसे आमको ऐसा कहो कि रसको रस करे, रंगको रंग करता है। लेकिन वह सब भिन्न-भिन्न जगह लटकते हैं ऐसा नहीं है। वह तो अपेक्षासे कहनेमें आता है। रस भी आममें है, रंग भी आममें है, गन्ध भी आममें है।

इसप्रकार ज्ञानगुणकी पर्याय भी द्रव्यमें है, आनन्दकी पर्याय भी द्रव्यमें है, सब द्रव्यमें है। उससे भिन्न लटकते हो तो द्रव्यका अनुभव कैसे हो? आनन्दका अनुभव किसे हो? ज्ञानको जाननेका अनुभव किसे हो? द्रव्य और पर्याय उस अपेक्षासे एक है। उसे क्षणिक और त्रिकालकी अपेक्षासे भिन्न कहनेमें आता है। पर्याय पलटती रहती है और द्रव्य शाश्वत है, उस अपेक्षासे। बाकी उस द्रव्यकी ही वह पर्याय है और उस द्रव्यका ही वह गुण है। लेकिन द्रव्य अपेक्षासे उसे भिन्न करके कहनेमें आता है। पर्याय और द्रव्यको अभेद करके कहो तो द्रव्य उस रूप परिणमता है। ऐसा कहनेमें आता है।