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ज्ञायकरूप हो जाना चाहिये। ज्ञायक ज्ञायकरूपसे श्रद्धामें हुआ। उसकी परिणतिमें अंशमें हुआ, आंशिक हुआ लेकिन पूर्ण होनेके लिये उसे प्रयास चाहिये। बिना प्रयास नहीं होता।
मुमुक्षुः- वह कैसा प्रयास?
समाधानः- बारंबार ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायक। उसे सहजरूपसे ज्ञायक ज्ञायक होना चाहिये। ज्ञायक ज्ञायक करते-करते वह आगे बढे तो अकेला ज्ञायक हो जाता है। सबके बीच, विभावके बीच रहा तो है ही। विकल्प आते हैं, विकल्पके बीच रहा है, लेकिन विकल्पसे भिन्न हुआ। लेकिन उसे ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायककी उग्रता हो जाय तो वह होता है। ज्ञायककी उग्रता होनी चाहिये, सहजरूपसे।
जो ज्ञायक होनेवाला है, उसकी दशा ही अलग होती है। उसे आहारका विकल्प छूट जाय, चलनेका विकल्प छूट जाय, वह पूरा भिन्न हो जाता है, उसे सब विकल्प छूट जाते हैं। उसे आहारका, निद्राका सब विकल्प छूट जाय। ऐसा ज्ञायक हो जाय, (जब) ज्ञायककी उग्रता होती है (तब)। लेकिन पहले तो उसकी श्रद्धा होती है। उसकी श्रद्धा हो, उसकी परिणति हो, उसकी स्वानुभूति हो, लेकिन उसे पूर्ण होनेमें तो बहुत प्रयास होता है तब होता है।
मुमुक्षुः- श्रद्धाका स्वभाव तो ऐसा है कि एकको ही ग्रहण करती है।
समाधानः- एक ज्ञायकको ग्रहण करती है।
मुमुक्षुः- या तो बाहरका, या तो..
समाधानः- मैं ज्ञायक हूँ, ऐसे ग्रहण करे। लेकिन ज्ञान सब जानता है। श्रद्धामें तो ऐसा आता है कि मैं ज्ञायक हूँ। क्षण-क्षणमें ज्ञायक हूँ, ऐसा ग्रहण किया। लेकिन ज्ञानमें जानता है कि अभी विकल्प खडे हैं। विकल्प खडे हैं तब तक ज्ञायककी दशा पूर्ण नहीं है। अभी विकल्प खडे हैं तब तक ज्ञायककी दशा पूरी नहीं है। विकल्प मेरेमें नहीं है वह बराबर, विकल्प नहीं है वह बराबर, लेकिन मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक- ज्ञायक करता है फिर भी अभी विकल्प खडे हैं, वह उसे ज्ञानमें रहता है। तब तक मुझे प्रयास करना है। विकल्प है तब तक प्रयास करना बाकी है। ज्ञायक-ज्ञायक भले ज्ञायक दिखता हो, दूसरा कुछ नहीं दिखाई दे, फिर भी विकल्प खडे हैं वह तो स्वयं जानता है कि विकल्प तो खडे हैं, इसलिये अभी प्रयास बाकी है। प्रयास करना बाकी है। भले ज्ञायक दिखाई दे, फिर भी विकल्प तो है। इसलिये प्रयास करनेका बाकी है।
मुमुक्षुः- निर्विकल्प होना है।
समाधानः- हाँ, निर्विकल्प होनेका बाकी है। पूर्ण निर्विकल्प। फिर विकल्प ही