२५२ उत्पन्न न हो, ऐसा निर्विकल्प। एक क्षण विकल्प छूट जाय ऐसा नहीं, विकल्प उत्पन्न ही न हो। ऐसा हो तो पूर्ण होता है। पूर्ण होना इस कालमें बहुत मुश्किल है। अभी तो उसे श्रद्धा-सम्यग्दर्शन हो, फिर आगे बढना, सहज आगे बढना (कठिन है)।
मुमुक्षुः- श्रद्धा और ज्ञानमें आपको दोष दिखता है?
समाधानः- आपका अधिक परिचय करुँ तो मुझे मालूम पडे। बाकी आप बोलते हो उसमें तो..
मुमुक्षुः- मैं कल आपके पास आऊँगी।
समाधानः- ... उसकी श्रद्धा भी अंतरमेंसे आनी चाहिये। बहुत प्रकार होते हैं। विकल्पसे श्रद्धा करे, अंतरसे श्रद्धा करे, फिर विभावको गौण करे लेकिन अंतरमें अभी करनेका बहुत बाकी रहता है। बहुत करनेका बाकी है।
मुमुक्षुः- सब करना है, चाहे जितना बाकी क्यों न हो।
समाधानः- लेकिन ज्ञायककी दशा, स्वानुभूतिकी दशा.. अंतरमें जो करना है, उसमें बाहरसे कुछ करना नहीं होता, अंतरमें स्वयंको करना है।
मुमुक्षुः- आपको मैंने देखा नहीं था, लेकिन आपके हृदयका ख्याल था। कल रातको मैंने इतनी प्रार्थना कि थी, गुरुदेव! बहिनश्रीकी वाणीमें आकर मुझे समझाना। इतना... हम ऐसे कूत्तेके पिल्लकी भाँति गुरुदेवके चरणमें बैठें...
समाधानः- उनकी टेपमें पहाडी और लोखंडी आवाज लगती है, गुरुदेवको साक्षात देखे हों तो क्या लगे?
मुमुक्षुः- इतना अफसोस होता है, लेकिन क्या हो?
समाधानः- टेपमेंसे इतनी असर होती है..
मुमुक्षुः- इतना अफसोस रहता है, क्या करें?
समाधानः- क्या करे? स्वयंको पुण्य नहीं थे तो मिल नहीं सके। पुण्यकी बात है, क्या हो?
मुमुक्षुः- उसके लिये तो मैं कितनी रोती हूँ। सिर्फ इस एक बातके लिये, वाणी सुनते-सुनते। देखे बिना कैसे श्रद्धा हो? जैन नहीं हो, देखे नहीं हो, किसे ऐसी श्रद्धा हो?
समाधानः- हजारों लोगोंमें गुरुदेवका पहाडी आवाज, लोग समझे, न समझे लेकिन मुग्ध होकर आश्चर्यचकित होकर सुनते थे। आत्मा.. आत्मा.. आत्मा शब्द आये, सुनते। हजारों लोगोंमें उन्होंने व्याख्या दिये हैं।
मुमुक्षुः- .. प्रवचन था तो यह शब्द, गुरुदेवके यह शब्द, पर जाननेमें नहीं आता, भगवान आत्मा, तेरे हर उपयोगमें भगवान आत्मा तुझे जाननेमें आ रहा है,