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और तू ज्ञेयको देख रहा है? भगवानको पीठ दिखाता है? मैं तो प्रवचनमें कितना कहती हूँ। ऐसी ही शक्तिसे।
समाधानः- भावना ... बहुत उग्र... सर्वज्ञ स्वभावकी श्रद्धा करके आगे जाना बाकी रहता है। पहले श्रद्धाका बल आये, फिर आगे बढना है।
मुमुक्षुः- आगे बढनेके लिये ही कोई सच्चा सतसमागम चाहिये। मैं वही कहती हूँ।
समाधानः- आप बारंबार मलाड जाइये। मुुमुक्षुः- आपने यह आज्ञा दी है, मैं जाऊँगी। लेकिन इस प्रकार पहले लोग कितनी ही जगह दिखाते हैं ...
समाधानः- ... तो भी विकल्प खडा रहता है। तो भी विकल्प खडा रहता है।
मुमुक्षुः- सच्ची बात है। इसीलिये तृप्ति नहीं होती।
समाधानः- श्रद्धा की तो भी तृप्ति तो होती नहीं।
मुमुक्षुः- इसीलिये तो पूछना पडता है।
समाधानः- मेरेमें नहीं है, ज्ञायक हूँ। ऐसी श्रद्धा की कि मेरेमें कुछ नहीं है, वह बात सच्ची है। नहीं है, फिर भी खडा है। अब उसे टालनेका (प्रयत्न करना)।
मुमुक्षुः- इसीलिये तो हम तृप्त नहीं होते हैं। अभी ऐसा लगता है कि अभी बाकी है, बाकी है। यह हो गया और तृप्त हो गये, अब कुछ (नहीं करना है), ऐसा नहीं है। तृप्ति नहीं होती, इसीलिये तो यह...
समाधानः- वांचनमें जाओ तो फर्क पडेगा। चीमनभाई पढते हैं, उनके वांचनमें जाओ।
मुमुक्षुः- तो भी क्यों जीवको सम्यग्दर्शन नहीं होता?
समाधानः- सच्ची देशनालब्धि हुई हो तो सम्यग्दर्शन होता ही है। देशनालब्धि सच्ची हुई हो तो सम्यग्दर्शन होता है। भले ही देर लगे, लेकिन होता ही है। देशनालब्धिके साथ तो सम्बन्ध है। साक्षात सत्पुरुषका उपदेश उसे प्राप्त हो, साक्षात मिले, शास्त्र नहीं, साक्षात मिले और अंतरमें यदि वह उतारे तो देशनालब्धि होती है। और देशनालब्धि जिसे हो उसे भले ही उस वक्त नहीं, परंतु कालांतरमें भी सम्यग्दर्शन होता है।
निश्चयका ग्रहण करके साथमें जो पर्याय है, उसे जाननेकी आवश्यकता है। जो है उसमें कौन-सा, किस प्रकारका वह ढूंढना पडता है। उसे अंतरसे ऐसी भावना होती है। गुरुदेव मिले नहीं है इसलिये उन्हें ऐसा (होता है)। हम यहाँ बरसोंसे रहे। उनकी