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समाधानः- .. (स्वद्रव्यमेंसे) पर्याय आती है। और गुण द्रव्यके (आश्रयसे रहे हैं)। द्रव्य और गुण दोनों एकमेक है। पर्याय क्षणिक है, अनादि अनन्त नहीं है, बदलती है। अग्नि उष्ण है, उस उष्णताका कार्य उसे होता रहता है। पानी ठण्डा है, उस ठंडकका कार्य वह उसके स्वयंके शीतलगुणके स्वभावके कारण होता है। लेकिन यदि सामान्य अपना कार्य न करे तो सामान्य ही नहीं रहता। अग्नि (क्यों कहलाती है)? क्योंकि उष्ण है। पानी ठण्डा क्यों कहलाता है? क्योंकि वह शीतल है। वह सब उसका स्वभाव है। सामान्यरूप है, लेकिन उसका कार्य करता है-ठष्णेरूप, उष्णरूप।
मुमुक्षुः- विभाविक शक्ति है, वह त्रिकाल है या कैसे है?
समाधानः- त्रिकाल है, लेकिन उसकी पर्याय विभावकी ओर जाती है तो विभावरूप परिणमती है। स्वभावमें जाय तो उसकी परिणति पलट जाती है। निमित्तके आश्रयकी ओर जाती है तो विभावरूप परिणमती है। निमित्तका आश्रय छोडकर स्वयं स्वभावमें जाय तो पलट जाती है, उसकी पर्याय-परिणति पलट जाती है।
.. जलमें समाता है इसलिये पानी पानीरूप है, तरंगरूप नहीं रहते, पानीरूप रहता है। तरंग होकर जो जलरूप होते हैं, वह तरंगरूप नहीं रहते। पानीके अन्दर तरंगरूप नहीं होते। पानीरूप यानी उसके द्रव्यरूप-वस्तु जो पानी है उस रूप हो जाते हैं। तरंग उसमें समाते हैं अर्थात उसके उस जातिके जो ज्ञान, दर्शन, चारित्रग गुण हैं, उस रूप है। उसमें तरंगरूप नहीं रहते।
मुमुक्षुः- आपका ऐसा कहना है कि..
समाधानः- .. पर्याय उस रूप-द्रव्य और गुणरूप सामान्यरूप (हो जाती है)। पहले द्रव्य इस प्रकार परिणमा था, उस जातिकी उसमें शक्ति है कि इस प्रकार द्रव्य परिणमा था। ऐसे। लेकिन तरंग तरंगरूप अन्दर नहीं रहते। तरंग अन्दर सामान्यरूप (हो जाते हैं)। तरंग नहीं रहते, उसमें समाते हैं इसलिये जलके तरंग जलरूप हो जाते हैं अर्थात जलरूप यानी सामान्यरूप हो जाते हैं। वहाँ तरंगका काम नहीं करता। वह तरंगका काम नहीं करता, सामान्यरूप हो जाता है। ये तरंग पानीमें इस प्रकार परिणमे थे, ऐसी उसमें शक्ति रहती है। ऐसे तरंग पानीमें हुए थे। बाकी तरंग तरंगरूप नहीं रहते हैं।
समाधानः- .. आत्माकी जिज्ञासा होनी चाहिये कि मुझे आत्मा कैसे समझमें आय? आत्मामें अनादि कालसे विभाव परिणति हो रही है। दुःख जो अनादिकालका जन्म-मरणका है, जन्म-मरणका दुःख, विभावका दुःख, अन्दर आकुलताका दुःख वह सब कैसे टले और आत्मा कैसे समझमें आये? उसके लिये जिज्ञासा हो और वह जिज्ञासा इतनी गहरी हो और गुरुका उपदेश। गुरु जो उपदेश देते हैं उसमें क्या कहते