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दूसरेको नहीं है, ऐसा ही कहते थे।
मुमुक्षुः- निर्णय करता है कि मैं तो जाननेवाला हूँ, जाननमात्र हूँ, और कुछ भी मैं नहीं, विकल्प भी मैं नहीं हूँ।
समाधानः- विकल्प मैं नहीं हूँ, ऐसा निर्णय करना। निर्णय करे लेकिन ज्ञायक सहज रहना। विकल्पसे निर्णय हुआ कि मैं विकल्प भी नहीं हूँ। निर्णय हुआ लेकिन निर्णयरूप परिणमन होना चाहिये। निर्णय होता है।
मुमुक्षुः- उनका ऐसा कहना कि वह तो यथार्थ परिस्थिति है।
समाधानः- मैं ज्ञायक हूँ, मैं ज्ञायक-जाननेवाला हूँ, मैं ज्ञाता हूँ। जो-जो विकल्प आये (उसी समय) मैं तो जाननेवाला हूँ, मैं जाननेवाला हूँ। बारंबार भीतरसे भावनासे जिज्ञासासे शरीर मैं नहीं हूँ, विकल्प मैं नहीं हूँ, शुभाशुभ जो-जो विकल्प आवे, सब मैं नहीं हूँ, मैं तो जाननेवाला हूँ। बारंबार उसका अभ्यास करना चाहिये। वह .. है। बारंबार भीतरसे मैं ज्ञायक हूँ, मैं जाननेवाला हूँ। ज्ञायक कोई अपूर्व है, मैं वस्तु हूँ, मैं ज्ञायक हूँ। बारंबार-बारंबार इसका अभ्यास करे। रटनरूप नहीं, परंतु भीतरसे महिमारूपसे मैं ज्ञायक हूँ। मैं ज्ञायकदेव हूँ। ज्ञायककी महिमापूर्वक मैं ज्ञायक ही हूँ। उसकी महिमा होनी चाहिये।
मुमुक्षुः- ज्ञेयोंकी महिमा छूट जायेगी और इसकी महिमा आयेगी।
समाधानः- हाँ, बस। बाहरकी संयोगकी महिमा छूट जाय और आत्माकी महिमा- ज्ञायककी महिमा आनी चाहिये। आत्मार्थी जीवको तो ऐसा ही होता है न। आत्माका प्रयोजन हो वहाँ उसका व्यवहार भी वैसा होता है।
मुमुक्षुः- सुखधाम अनंत सुसंत चही, दिन-रात रहे तद ध्यान मही, उसका अर्थ क्या है?
समाधानः- सुखधाम अनंत सुसंत चही। जो सुखका धाम है, जो अनंत सुखका धाम है, ऐसा जो अपना स्वरूप। सुखधाम अनंत सुसंत चही। संत जिसे चाहते हैं, संत उस रूप हो रहे हैं। जो अनंत सुखका धाम है। सुखधाम अनंत सुसंत चही, दिन रात रहे तद ध्यान महीं। दिन और रात जिसके ध्यानमें रहते हैं, ऐसे संत जो दिन और रात, अनंत सुखका धाम है, उसके ध्यानमें दिन और रात रहते हैं। ऐसा जो सुखका धाम, आत्माका स्वरूप सुखधाम है।
आत्मा कैसा है? सुखका धाम है, अनंत सुखका धाम है। उसमें दिन रात रहे। ससंत उसमें दिन-रात, मुनिओं क्षण-क्षणमें उसमें बारंबार-बारंबार दिन रात रहे तद ध्यान महीं, प्रशांति अनंत सुधामय जे। प्रशांति-एसी प्रशांति-विशेष शांति उसमें बरस रही है। प्रशांति अनंत सुधामय जे। अनंत सुधामय, अनंत अमृत स्वरूप है। सुधामय जे प्रणमुं