Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 270 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-२)

२७०

समाधानः- मुनिकी अंतर दशाको पहचानते नहीं, हम जड जैसे हैं कि जो वीतरागमें और मुनिमें भेद देखते हैं। हम जड जैसे हैं कि हम उनकी अंतर दशाको पहिचान नहीं सकते, मुनिओंकी अंतर दशाको निरख नहीं सकते कि हम उनमें भेद मानते हैं। केवलज्ञानी और मुनिओंमें भेद नहीं है। मुनिओंकी अंतर दशा माने क्या! उसे हम नहीं देख सकते हैं, हम जड जैसे हैं।

मुनिओंकी अंतर दशा माने वीतरागकी तलेटीमें आ गये हैं। उनकी अंतर दशाको हम पहचान नहीं सकते, हम जड जैसे हैं। अथवा द्रव्य स्वरूप आत्मा है, जिसने द्रव्यदृष्टि प्रगट की वीतराग स्वरूप आत्माको पहचाना उसे हम नहीं पहचान सकते। आत्मा कैसा है, उसे भी हम नहीं पहचान सकते। जिसने आत्माको ग्रहण किया, आत्माको ग्रहण किया ऐसे मुनि क्या काम करते हैं, हम नहीं पहचान सकते। हम जड जैसे हैं कि उनकी अंतर दशाको पहचान नहीं सकते। मात्र बाह्यदृष्टिसे सब देखते हैं। मुनिओं आहार करते हैं, मुनिओं विहार करते हैं, मुनिओंको विकल्प आता है, बाहरके प्रभावनाके विकल्प (आते हैं), हम जड जैसे हैं कि सब बाहरका देखते हैं, उनकी अंतर दशाको पहचान नहीं सकते। उनका अंतर कहाँ काम करता है और कहाँ विचरते हैं, बाहर दिखाई देते हैं, लेकिन वे अंतरमें ही विचरते हैं। आत्मामें ही वे तो विराजते हैं। आत्माके सिवा कहीं (नहीं है)। उसे हम देख नहीं सकते, जड जैसे हैं हम। उनकी लीनताको हम पहचान नहीं सकते। उनका आत्मा कहाँ विचरता है, उसे हम देख नहीं सकते। अंतर दृष्टि हमें नहीं है, हम जड जैसे हैं कि कुछ देख नहीं सकते।

.. मुनिओं कहाँ विचरते हैं। बाहरसे तू मत देख। वह तो अल्प विभावकी परिणति है। मुनिकी महिमा आती है, उसमेंसे बोलते हैं। स्वयं ही कहते हैं। ..देखना नहीं है, अंतर दृष्टिको देख, इस तरह स्वयं ही स्वयंकी भावनाको दृढ करते हैं। (हम जड जैसे हैं कि) ऐसा देखते हैं। अंतर परिणतिको देखना है। ऐसा कहकर अपने पुरुषार्थकी वृद्धि करते हैं। उनका अंतरंग देखकर स्वयं अपनी परिणतिको अन्दर दृढ करते हैं।

मुमुक्षुः- अंतर्मुहूर्त यानी कितना काल?

समाधानः- अंतर्मुहूर्त बहुत होते हैं। मुनिओंका अंतर्मुहूर्त तो क्षण-क्षणमें अंतर्मुहूर्त आता है।

मुमुक्षुः- क्षणमें छठ्ठा और क्षणमें सातवाँ, ऐसा निरंतर चलता है?

समाधानः- मुनिकी निरंतर वह दशा है। क्षण-क्षणमें पलटती है। साधकदशा है इसलिये अनेक प्रकारकी भावनासे बोलते हैं। उनकी स्वयंकी साधकदशा है। द्रव्यदृष्टिसे देखो, लीनतासे देखो, अनेक प्रकारकी स्वयंकी साधकदशा है, इसलिये अनेक प्रकारसे