Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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कहते हैं।

मुमुक्षुः- दृष्टि अपेक्षासे गुरुदेव और वीतरागमें भी कोई अंतर नहीं है।

समाधानः- दृष्टि अपेक्षासे भेद नहीं है। अंतर परिणति प्रगट हुयी। गुरुदेवमें और वीतराग दशामें कोई अंतर नहीं है।

मुमुक्षुः- अंतर देखे वह जड है।

समाधानः- सब अपेक्षाएँ समझनी है। जड मति हूँ? मुझे मुनिओंकी महिमा क्यों नहीं आती? ऐसा कहते हैं। मुनिओंकी विभाव परिणति देखने पर क्यों दृष्टि जाती है? मुनिओंकी महिमा, स्वयंको विशेष महिमा बढानेको (कहते हैं)। महिमा तो है, परंतु स्वयं अपनी विशेष वृद्धि करना चाहते हैं। मुनिकी महिमा करके स्वयं अपनी साधना वर्धमान करना चाहते हैं। शुभभाव साथमें है। परिणति अन्दर दूसरा काम करती है, लेकिन शुभभाव साथमें आता है। अमृतचन्द्राचार्य कहते हैं, मेरी परिणति मैली है, इसलिये मैं यह टीका करता हूँ। इस टीकासे मेरी परिणति शुद्ध होओ। परिणति अंतरसे करनी है और यह तो शुभभाव है, फिर भी ऐसा कहते हैं। इस टीकासे मेरी परिणति शुद्ध, विशेष शुद्ध निर्मल होओ। ऐसा कहते हैं। भावना अनेक प्रकारसे (भाते हैं)। मैं तो चिन्मात्र मूर्ति हूँ, परंतु मेरी परिणति मैली हो रही है। यह टीका-कथनी जो करता हूँ, उससे मेरी परिणति निर्मल होओ, ऐसा कहते हैं। बाहरसे टीका करनेमें अन्दर शुभभाव भिन्न है, अन्दर परिणति भिन्न है। शुद्ध परिणति प्रगट हुयी और शुभभाव साथमें हो तो भी उसके साथ होता है उतना ही, परिणति तो स्वयंसे करनी है अन्दर, फिर भी ऐसा कहते हैं कि इससे मेरी परिणति शुद्ध होओ।

मुमुक्षुः- अनेक प्रकारके विवक्षाके कथन आये।

समाधानः- अनेक प्रकारकी अपेक्षाएँ आती है।

मुमुक्षुः- प्रत्येक अपेक्षामें एक ही केन्द्र है कि वीतरागता कैसे बढे।

समाधानः- वीतरागता कैसे बढे, साधना कैसे बढे। कहाँ केवलज्ञान, अल्प ज्ञान कहाँ। कहाँ केवलज्ञानका वीतरागपद और कहाँ हमारा यह पद, मुनि ऐसा कहे।

गुरुदेव क्या कहते हैं? आत्माका मार्ग क्या बताते हैं? क्या मार्ग बताते हैं, उसे पहचानना। आत्मा कैसा है? आत्माका स्वरूप कैसा है? आत्मा ज्ञायक है। ज्ञायकमें सब ज्ञान, दर्शन, चारित्र सब आत्मामें है। बाहर कहीं नहीं है। ऐसा जो गुरुदेवने बताया है, उसे ग्रहण करना। और जगतमें सर्वोत्कृष्ट हो तो जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्र है और अन्दर आत्मा सर्वश्रेष्ठ है। आत्माको दर्शानेवाले पंच परमेष्ठी हैं, वे सर्वोत्कृष्ट हैं।

भगवानने वह स्वरूप प्रगट किया है और उसमेंसे जो वाणी निकलती है वह वाणी दूसरोंको तारणहार होती है। जो भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचानता है, स्वयंको