२७२ पहचानता है वह भगवानको पहचानते हैं। इसलिये भगवानकी वाणीमें जो रहस्य आता है उसे पहचाने। भगवानको पहचाने और स्वयंको पहचाने। तो उसे ज्ञान, श्रद्धा और मुक्तिका मार्ग प्रगट होता है।
गुरुदेवको पहचाने। साधना जो अंतरमें कर रहे हैं, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रको। साधना कर रहे हैं उसका स्वरूप पहचाने। उन पर महिमा आये, उनकी भक्ति आये। जगतमें सर्वोत्कृष्ट हो तो देव-गुरु-शास्त्र है। जो आत्माका स्वरूप साध रहे हैं और जिन्होंने पूर्ण किया, उनकी महिमा आये उसे आत्माकी महिमा आये तो ज्ञान, श्रद्धा और चारित्रका मार्ग प्रगट होता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है।
... भगवान विराजमान हैं, वैसे ही शाश्वत भगवान कुदरतमें परमाणु भगवानरूप परिणमित हो गये हैं। जगतके जो परमाणु हैं, वह रत्नके आकाररूप भगवानरूप शाश्वत रत्नके पाँचसौ धनुषके, जैसे समवसरणमें भगवान विराजते हैं, वैसे ही नंदिश्वरमें भगवान हैं। ऐसे बावन जिनालय हैं, उसमें शाश्वत भगवान १०८, ऐसे भगवान प्रत्येक मन्दिरमें होते हैं। ऐसे रत्नके होते हैं। जैसे समवसरणमें विराजते हों वैसे ही। मात्र वाणी नहीं है। बाकी बोले या बोलेंगे, ऐसी उनकी मुद्रा हूबहू भगवान जैसी, किसीने किये बिना, शाश्वत भगवान हैं। उनकी मुद्रा हूबहू मानो साक्षात जिवंत मूर्ति हों, ऐसे भगवान विराजते हैं। ऐसे मेरु पर्वतमें हैं, ऐसे नंदिश्वरमें है। ऐसे शाश्वत जिनालय जगतमें हैं। जिनालय हैं और शाश्वत जिन प्रतिमाएँ हैं।
भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं तो उनकी प्रतिमाएँ भी जगतमें, कुदरत भी ऐसा कहती है कि जगतमें भगवान ही सर्वोत्कृष्ट हैं। इसलिये परमाणु भी भगवानरूप परिणमित हो गये हैं। भगवानरूप परमाणु, पुदगल भी भगवानरूप परिणमित हो जाते हैं। समवसरण शाश्वत, भगवान शाश्वत, सब जगतके अन्दर शाश्वत है। अपने तो यहाँ स्थापना करके दर्शन करते हैं, बाकी शाश्वत भगवान जगतमें हैं।