Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- हाँ, उतना करना पडता है। देव-गुरु-शास्त्रके शुभभाव आते हैं। बाहरके कार्य अपने हाथमें नहीं है। बाहरके कार्य होना, शुभभाव आये, गुरु सम्बन्धित, देव सम्बन्धित, शास्त्र सम्बन्धित सब भाव आये। बाहरका कार्य हो वह स्वयं (होता) है। अशुभभावसे बचनेको शुभभावमें आये, परन्तु शुभ भी मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसा ध्येय होना चाहिये, ध्येय होना चाहिये।

मुमुक्षुः- उसे कर्तव्य नहीं मानना।

समाधानः- नहीं, कर्तव्य नहीं, यह सर्वस्व है ऐसा नहीं मानना।

मुमुक्षुः- .. एक उलझन रहा करती है कि कोई ऐसा समय नहीं है कि (राग नहीं हो)।

समाधानः- राग होता रहता है, बिना रागके दिखता नहीं। राग रहित आत्मा है, उस ओरकी श्रद्धा परिणतिरूप नहीं है न, इसलिये ऐसा होता है।

मुमुक्षुः- मूलमें तो श्रद्धा ही नहीं पलटी।

समाधानः- श्रद्धा पलटी नहीं। यथार्थ श्रद्धा अंतरमेंसे परिणतिरूप श्रद्धा होनी चाहिये वह श्रद्धा नहीं हुयी। पीछे मुडना, विवेक करना इन सबके लिये स्वयंको विचार करना है।

मुमुक्षुः- .. परन्तु रुचि बाहरमें बहुत जाती है, पलटनी बहुत कठिन लगती है, क्या करना मार्गदर्शन दीजिये?

समाधानः- सुनना, पढना। यहाँ तो गुरुदेवकी भूमि है न, इसलिये शान्ति (है)। अन्दर समझना।

मुमुक्षुः- बहुत अच्छा लगता है। भावनगर रहते हैं।

समाधानः- कोई उन्हें समझाये तो हो सकता है। करने जैसा तो यही है, मनुष्य जीवनमें। सारभूत तो एक आत्मा ही है। आत्माको पहचानना। बाकी कुछ सारभूत नहीं है। इस मनुष्य जीवनके अन्दर तो सब चलता ही रहता है। व्यापार आदिमें समय जाता है, बाकी सारभूत करना तो यही है। आत्माको पहचानना। उसकी जिज्ञासा, लगनी आदि करने जैसा है।

आत्मा सबसे भिन्न-न्यारा है। शरीरसे, विभावसे भिन्न आत्माका स्वभाव ज्ञायक है, उसे पहचानना। अनन्त गुणोंसे भरपूर है। बारंबार सुनना, पढना। पलनेका स्वयं प्रयत्न करना। विचार करना, करना तो यह एक ही है। सारभूत एक आत्मा ही है। आत्माको पहचानना। बाहरमें रुचि जाती हो, बाहरमें रस आता हो, अंतरमें रुचिको पलटनेका प्रयत्न करना। जैसी रुचि, वैसा प्रयत्न-पुरुषार्थ होता है। रुचि अनुयायी वीर्य। रुचि अनुयायी पुरुषार्थ होगा। जैसी रुचि, वैसा। विचार करके बारंबार प्रयत्न करना। सुख आत्मामें