Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

२८० उदासीन रहनेकी, उदासीनतामें जिसे रस हो, जिसे ज्ञाताका रस हो, वह रह सकता है।

जीवको अनादिसे कर्ताबुद्धिका इतना रस लगा है कि मैं करुँ, यह किया, मैंने किया, मैंने किया उसके रसमें, ज्ञाता होकर निवृत्त रहना कि मैं कुछ नहीं कर सकता, वह उसे मुश्किल लगता है। जिसे ज्ञायकका रस हो, जिसे ज्ञायककी महिमा हो, वह अन्दरसे महिमासे निर्णय करे, श्रद्धा करे और परिणति प्रगट कर सके। विकल्पमें भी जिसे अन्दर ज्ञायक रहनेका उतना रस हो या जिसे अन्दर ज्ञायककी निवृत्त दशा रुचती हो वह रह सके। जिसे कर्तृत्वबुद्धि रुचती हो वह नहीं रह सकता।

अन्दरसे महिमा लगनी चाहिये। उसने विचारसे नक्की तो किया कि मैं कर्ता नहीं हूँ, ज्ञाता हूँ। लेकिन उसे ज्ञायकका महिमा और रस हो तो उसे ज्ञायककी बारंबार भावना और जिज्ञासा हो, तो उसे परिणति प्रगट होती है। कुछ करना नहीं है, ऐसी निवृत्त दशा जिसे सुहाती हो, रुचती हो वह अन्दर रह सकता है।

मुमुक्षुः- कुछ किये बिना रह सके, ऐसा?

समाधानः- हाँ। मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं तो जाननेवाला हूँ। ऐसी उदासीनता और ऐसी ज्ञायककी महिमा जिसे लगे, वह स्वयं श्रद्धा करके वैसी परिणति कर सकता है, तो उसकी सहज दशा होती है। ... निकम्मा हो जाय, मैं कुछ नहीं कर सकता? शून्य हो जाय? निष्क्रिय हो जाय? ऐसा अन्दर लगता हो वह नहीं रह सकता।

मुमुक्षुः- इसमें सब उपाधि खत्म हो जाती है, बोजा खत्म हो जाता है।

समाधानः- अन्दर रस लगना चाहिये। श्रद्धा तो करे। फिर छूटे तो बादमें। पहले ऐसी श्रद्धा तो करे। अन्दर ऐसी महिमा, श्रद्धा करे। परिणति बादमें प्रगट होती है। परिणति प्रगट होनेके बाद अल्प अस्थिरता रहती है। लेकिन उसे अन्दर एकत्वबुद्धि तोडनी मुश्किल पडती है। सिद्ध भगवानको कुछ नहीं करनेका है? प्रवृत्तिका उतना रस होता है, इसलिये ऐसा लगता है कि कुछ नहीं करनेका? यह सब छूट जायगा तो शून्य हो जायेंगे तो? ऐसा हो जाता है। परन्तु अन्दर स्वभावमें सब भरा है, ऐसी महिमा अन्दरसे आनी चाहिये, उतनी श्रद्धा अन्दरसे आनी चाहिये।

मुमुक्षुः- ज्ञानधारा भी निर्विकल्पपने काम कर रही है?

समाधानः- जैसे श्रद्धा कार्य करती है, वैसे ज्ञानधारा भी सहज काम करती है। उसे विकल्प नहीं उठाना पडता। ज्ञानधारा भी निर्विकल्पपने काम करती है और श्रद्धा भी वैसे ही काम करती है। निर्विकल्प यानी स्वानुभूतिकी निर्विकल्पता नहीं। उसकी परिणति उस जातकी है, परिणति उस जातकी है। उसे रागका विकल्प कर-करके रहना पडता है, ऐसा नहीं है। सहज परिणति (चलती) है।

जैसे एकत्वबुद्धिकी परिणति सहज है, उसे विकल्प करके रखनी नहीं पडती, वह