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तो अनादिसे सहज हो गयी है। एकत्व (परिणतिको) विकल्प करके रखनी नहीं पडती। विकल्प जुडे हुए हैं, वैसे ही रहती है।
वैसे ज्ञानधारा भी उसकी ऐसी सहज हो जाती है कि उसे विकल्प करके रखनी नहीं पडती। अपना स्वभाव है इसलिये वह तो सहज ही है। लेकिन स्वयं उस रूप सहज परिणमता नहीं, इसलिये वह सहज नहीं होती। कर्तृत्वबुद्धिका रस लगा है। इसलिये स्वयं सहज नहीं परिणमता। उसकी ज्ञानधारा सहज ही है। जैसे एकत्वधारा (चलती थी), उसमेंसे भेदज्ञानकी धारा हुयी तो उदयधारा और ज्ञानधारा, दोनों उसे चालू हो जाती है।
मुमुक्षुः- उस प्रकारका रस होना चाहिये।
समाधानः- उस प्रकारका ज्ञाताधाराका रस अन्दरसे लगना चाहिये।
मुमुक्षुः- मुझे दीक्षा ही लेनी है, ऐसा बचपनसे (लगता था)। दुकान पर बैठते थे तब शास्त्र ही पढते थे। छोटे थे (उस वक्त) यदि कोई भक्ति करे, भजन करे उनके पास जाते थे। ऐसा उनको बचपनसे वैराग्य था। बादमें पालेज गये। उनका जन्म उमरालामें हुआ, थोडे साल वहाँ रहे, बादमें पालेज गये। वहाँ दुकान पर बैठते। उनके भाई ... स्वयं स्वाध्याय करते थे। २२-२३ सालकी उम्रमें गुरु ढूँढनेके लिये हिन्दुस्तानमें फिरे कि कोई अच्छे गुरु मिले। बोटाद संप्रदायके हिराजी महाराज स्थानकवासी संप्रदायमें दीक्षा ली।
तत्पश्चात शास्त्रका अभ्यास बहुत (किया), सब विचार करके पढा, उसमेंसे उन्हें लगा कि सच्चा मार्ग क्या है। स्थानकवासी, श्वेतांबर शास्त्र और दिगंबर शास्त्र, सब शास्त्र पढे। उसमेंसे उन्हें ऐसा लगा कि मुझे आत्माका करना है। यह शरीर भिन्न, आत्मा भिन्न, अन्दर आत्मा जाननेवाला, यह विकल्पजाल हो रही है वह मेरा स्वभाव नहीं है। बस, एक ज्ञायक आत्मा मुझे समझमें आ गया। समयसार दिगंबर शास्त्र (मिला), उसमेंसे उन्हें वह अन्दरसे समझमें आया और अंतरमें उतर गये। उसमेंसे उन्हें ऐसा लगा कि अब मुझे इस भेसमें नहीं रहना है। इसलिये उन्होंने यहाँ आकर परिवर्तन किया।
स्थानकवासी संप्रदायमें वे बहुत उच्च कोटिके गिने जाते थे। उनकी क्रियाएँ बराबर शास्त्र अनुसार थी। जो आहार ले तो बराबर उनके लिये किया हो तो ऐसा कुछ नहीं लेते थे। थोडा भी ऐसा लगे कि उनके लिया बनाया है तो वापस चले जाते। इतने (कडक थे)। उनके प्रवचनमें हजारों लोग आते थे। सुबह पाँच-पाँच बजेसे सब बिछावन लगा देते थे, जगह रोकनेके लिये। उनका प्रवचन आत्मा पर चलता, सब सुनकर आश्चर्यचकित हो जाते। प्रवचनमें कोई आवाज नहीं करता। कोई वस्तु गिरी हो तो आवाज आये, इतनी शांति उनके प्रवचनमें होती थी। उतने लोग। स्थानकवासीके