Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

२८२ बहुत उच्च कोटिके (गिने जाते थे)। उनकी क्रियाएँ इतनी सख्त थी। शास्त्र अनुसार पालते थे।

शास्त्रमें जो लिखा हो उतने ही कपडे रखे, उसी तरह विहार करे, कोई चीज लेने जाय तो उनके लिये बनायी गयी कोई वस्तु नहीं लेते, तुरन्त वापस चले आते। ऐसी तो उनकी क्रियाएँ थी। उसमेंसे उन्हें लगा कि आत्माकी बात दिगंबर शास्त्रमें है। मैं यह मानता हूँ तो इस भेसमें रहकर क्या करुँ? इसलिये अंतरमें तो उतर गये, फिर परिवर्तन किया। मुहपत्तिका त्याग किया। लोगोंको उन पर अत्यंत भक्ति थी। उन्होंने परिवर्तन किया तो बहुत लोगोंने विरोध भी किया, फिर भी स्वयं अडिग रहे। यहाँ एक मकान है वहाँ परिवर्तन किया। फिर वषा तक शास्त्रका अभ्यास, स्वयं अन्दर बहुत ज्ञान-ध्यान करते थे। फिर लोगोंको धीरे-धीरे लगा कि जो कानजीस्वामी कहते हैं वह सत्य है। उन्होंने परिवर्तन किया (बराबर है)। उनकी छाप लोगोंमें इतनी हो गयी थी। इतनी छाप हो गयी थी तो धीरे-धीरे लोग उनके पीछे फिरसे आने लगे। थोडे तो उनके साथ ही खडे थे।

स्थानकवासी संप्रदायमें इतनी छाप थी कि सब धीरे-धीरे (आ गये)। वे कहते हैं वह सत्य ही है। कानजीस्वामी बिना विचार किये कुछ नहीं करते। सब लोग उनके पास वापस आये। तत्पश्चात उनका विहार आदि शुरू हुआ। बादमें धीरे-धीरे सब भक्त इकट्ठे होने लगे। उन्होंने किसीको कुछ नहीं कहा है। भक्तोंने मिलकर स्वाध्याय मन्दिर, मन्दिर, यह समवसरण, मानस्तंभ सबने मिलकर बनाया। फिर धीरे-धीरे उनका विहार (चालू हुआ)। पहले सौराष्ट्रमें विहार हुआ, फिर धीरे-धीरे गुजरातमें, मुंबईमें हर जगह गये। व्याख्यानें इतने लोग आते थे। उनके प्रवचनमें इतनी आत्माकी बातें आती थी कि लोग आश्चर्यचकित होकर सुनते थे।

फिर तो उन्होेंने यात्रा की। हिन्दुस्तानके कितने ही हिन्दीभाषी मुडने लगे। दिगंबर जो उस ओर हिन्दीभाषी है, वह सब मुडने लगे। यहाँ नानालाल कालीदास देरावासी हैं, वह भी इस ओर मुडे। वे मुख्यरूपसे भाग लेते हैं। स्थानकवासी मुख्यपने, कोई देरावासी, दिगंबर इस ओर मुडे। पूरा जीवन उन्होंने इसी तरह व्यतीत किया। एक आत्माका करना, एक आत्माके लिये सब करते।

मुमुक्षुः- स्वर्गवास हुआ उस वक्त कितनी उम्र थी?

समाधानः- ९१.

मुमुक्षुः- संसार तो उन्होंने भोगा ही नहीं न?

समाधानः- नहीं। बाल ब्रह्मचारी थे। विवाह नहीं किया। सबने आग्रह किया, लेकिन कहा, मुझे दीक्षा लेनी है और मुझे ब्रह्मचारी ही रहना है। दीक्षा ले ली। ४५