Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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ग्रहण करे, अपना अस्तित्व ग्रहण करे तो उसमें ध्यान हो। अस्तित्वको ग्रहण किये बिना कहाँ एकाग्र होकर खडा रहेगा? एकाग्रता किस पर करनी? ज्ञायकके ग्रहण करे तो उसमें एकाग्रता होती है। नहीं तो विकल्पकी एकाग्रता हो जायेगी। अमुक प्रकारके विकल्प हो जायेंगे तो उसे ऐसा लगेगा कि मैं एकाग्र हो गया। सूक्ष्म विकल्प है। ज्ञायकको ग्रहण करे तो एकाग्रता हो। ज्ञायकके ग्रहण किये बिना एकाग्रता होती नहीं।

सच्चे ज्ञान बिना सच्ची श्रद्धा होती नहीं। इसलिये ज्ञान और श्रद्धा दोनों साथमें रहे हैं। मुक्तिके मार्गमें श्रद्धान मुख्य है, लेकिन श्रद्धाके साथ ज्ञान तो काम करता ही रहता है। यथार्थ ज्ञान साथमें होना चाहिये। अज्ञान भी बाधक है। कुछ जानता नहीं, मैं कौन हूँ? यह विभाव क्या? स्वभाव क्या? द्रव्य-गुण-पर्याय कुछ जानता नहीं। वह अज्ञान भी बाधक है।

श्रद्धा-स्वरूपकी श्रद्धा नहीं है तो भी बाधक है। जाना कि यह वस्तु ऐसी है। द्रव्य, गुण (है)। प्रतीत डगमगाती है। श्रद्धान नहीं है तो वह भी बाधक है। दोनों बाधक हैं।

मुमुक्षुः- श्रद्धा स्वयं सम्यक होती है। ज्ञानका विकास तो धीरे-धीरे होता जाता है। ...

समाधानः- श्रद्धा तो जब यथार्थ होती है तभी उसे सच्ची श्रद्धा कहते हैं। बाकी विकल्पपूर्वककी श्रद्धा, उसको यथार्थ श्रद्धाका नाम नहीं दिया जाता। श्रद्धा धीरे-धीरे बढती जाय ऐसा नहीं, सच्ची श्रद्धा तो जिस क्षण होती है उसी क्षण होती है। ज्ञान धीरे-धीरे बढता जाय, वह तो प्रयोजनभूत ज्ञान तो साथमें होता है। श्रद्धाके साथ प्रयोजनभूत ज्ञान कि मैं ज्ञायक हूँ और यह विभाव है, स्व-परका भेदविज्ञान, बस, यह प्रयोजनभूत ज्ञान और श्रद्धा दोनों साथमें ही होते हैं। फिर ज्ञानका विस्तार हो वह अलग बात है। विस्तार धीरे-धीरे हो, वह अलग बात है। प्रयोजनभूत ज्ञान और श्रद्धा दोनों साथमें ही रहे हैं।

मुमुक्षुः- जिस समय श्रद्धा सम्यक होती है..

समाधानः- उसी क्षण ज्ञान सम्यक होता है। जिस क्षण सम्यक श्रद्धा हुयी, तब ज्ञान भी सम्यक होता है। उसके पहले ज्ञानको सम्यक नाम नहीं दिया जाता और उसके पहले विकल्पपूर्वककी श्रद्धाको भी सम्यक नाम नहीं दिया जाता। उसे व्यवहार कहते हैं, व्यवहार श्रद्धा कहनेमें आती है। देव-गुरु-शास्त्रकी सच्ची श्रद्धा और विचारसे नक्की करे कि मैं भिन्न हूँ, यह मेरा स्वभाव नहीं है, ऐसे विचारसे नक्की करे तो भी सम्यक नाम तो जब भेदविज्ञानकी परिणति हो तभी उसे सम्यक नाम कह सकते हैं।

मुमुक्षुः- ... जब होता होगा, उस वक्त श्रद्धामें साथ-साथ नहीं चलता होगा?