२९४
समाधानः- समयकी मर्यादा नहीं है। गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया, उसे स्वयं ग्रहण करके पुरुषार्थ करे, एक ज्ञायक तत्त्व ही ग्रहण करने जैसा है। उसकी परिणति अभी भी प्रगट कर सकते हैं और भविष्यमें भी कर सकते हैं। अभी करते-करते उतना पुरुषार्थ नहीं चले तो बारंबार उसका अभ्यास करे, बारंबार जिज्ञासा करे, भावना करे कि ज्ञायक ही आदरणीय है, गुरुदेवने कहा वही मार्ग आदरने योग्य है। चैतन्यका द्रव्य- गुण-पर्याय क्या है, उसे पहचाननेका प्रयत्न करे। यह विभाव क्या है? स्वभाव क्या है? सबको पहचाननेका प्रयत्न करे। एक चैतन्य ही आदरणीय है, दूसरा कुछ आदरणीय नहीं है। ऐसी बारंबार भावना करे। ऐसा करते-करते उसमें गहरे संस्कार पडे तो दूसरे भवमें भी कर सकता है। उसे कालकी मर्यादा नहीं है। अपनी मन्दताके कारण अटकता है। स्वयं पुरुषार्थ करे तो होता है। ऐसा अनजाना मार्ग मिलना मुश्किल, गुरुदेवने बताया। वह मार्ग कोई अपूर्व मार्ग है। उसकी महिमा आये, आत्माका स्वरूप कोई अपूर्व है, अनुपम है, वह कैसे प्राप्त हो, गहरी रुचि करे तो हो सकता है।
मुमुक्षुः- बाहरके विषयमें इतने एकमेक हो जाते हैं कि इसमें रुचि स्थिर होनेमें बहुत .. लगता है।
समाधानः- देर लगती है। उसमेंसे भी बारंबार प्रयत्न करता रहे। वहाँसे रुचि स्वयंकी ओर लानेका बारंबार प्रयत्न करता रहे। करने जैसा यही है, ऐसा निर्णय करे, श्रद्धा करे, बारंबार प्रयत्न करके पलटे। पलटे बिना छूटकारा नहीं है। वह एक उपाय है। स्वयं पलटे बिना शान्तिका दूसरा कोई उपाय नहीं है। शान्तिका उपाय स्वयंको ही पलटना है। कोई नहीं कर देता, स्वयंको ही पलटना है। गुरुदेवने मार्ग दर्शाया। देव-गुरु-शास्त्र सब निमित्त बनते हैैं। करना स्वयंको ही है। सर्व द्रव्यकी स्वतंत्रता बतायी है। तू कर तो हो सके ऐसा है। तुझे कोई रोकता नहीं। कर्मका उदय तुजे जबरजस्ती रोकता नहीं। तू कर तो हो सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- कर्मका बहाना निकाले वह भी गलत है।
समाधानः- गलत है। कर्म रोकता नहीं, कर्म तो निमित्त है। स्वयं पुरुषार्थ करे तो कर्म उसे आडे नहीं आते। कर्म भी बदल जाते हैं, स्वयं पुरुषार्थ करे तो।
मुमुक्षुः- क्रमबद्धका बहुत शिक्षण दिया है। ... बहुत परिचय था न, इसलिये क्रमबद्धके पुस्तकके आधारसे .. है।
समाधानः- क्रमबद्धको पुरुषार्थके साथ सम्बन्ध है। पुरुषार्थ बिनाका क्रमबद्ध होता नहीं। स्वयं रुचि पलटे, पुरुषार्थ करे, अपनी ओर आये, उसका क्रमबद्ध उस प्रकारका होता है। लेकिन स्वयं पलटता नहीं और बाहरमें रुचि करके बैठा है, तो उसका क्रमबद्ध उस प्रकारका होता है। जिसे बाहरकी रुचि है उसका क्रमबद्ध उस प्रकारका है। अपनी