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ओर रुचि करे उसे उस प्रकारका क्रमबद्ध होता है। अपनी रुचिको कोई क्रमबद्ध रोकता नहीं।
जिज्ञासु, जिसे अंतरमें लगी है, अंतरमें मुझे कहीं चैन नहीं पडती, मुझे आत्मा ही चाहिये, ऐसी जिसे अंतरमेंसे लगी हो, उसे ऐसा (नहीं) होता कि मैं क्या करुँ, मुझे अंतरमें तो जाना है, लेकिन यह क्रमबद्ध मुझे रोक रहा है। उसे अन्दर भावना होती ही नहीं। मैं ऐसा पुरुषार्थ करु कि मेरा क्रमबद्ध ऐसा ही हो। मेरा पुरुषार्थके कारण,... मुझे यह चाहिये ही नहीं, क्रमबद्ध जो भी हो, परंतु मुझे तो पलटना ही है। अपनी रुचि इस ओर जागृत हुयी तो उसका क्रमबद्ध उस प्रकारका हा ही होता है। पुरुषार्थके साथ क्रमबद्धका सम्बन्ध जुडा है।
जिज्ञासुको क्रमबद्धका बहाना और बचाव आता ही नहीं। जिसे लगी है कि मुझे मेरा ही करना है, कहीं नहीं अटकना है, उसे क्रमबद्धका विचार नहीं आता। मेरा क्रमबद्ध ऐसा है कि मैं अपनी ओर झुकु। मुझे क्रमबद्ध नहीं रोकता। क्या करुँ, कैसे करुँ, मुझसे होता नहीं, ऐसा क्रमबद्ध होगा तो मैं क्या करुँगा? गुरुदेवने स्वतंत्रता कही है।
क्रमबद्ध तो कर्ताबुद्धि छुडानेके लिये है। तू ज्ञायक हो जा, ऐसा गुरुदेव कहते हैं। तू कुछ नहीं कर सकता, तू ज्ञायक हो जा। ज्ञायक हो जा। कर्ताबुद्धि छोड दे, ज्ञातापना प्रगट कर। फिर जैसे होना होगा वैसे होता है। ज्ञायक हो जा। ज्ञायकमें सब आ जाता है। ज्ञायक हो जा, उसमें अपना पुरुषार्थ आ गया। ज्ञायक होनेवालेको अपना पुरुषार्थ आ जाता है।
मुमुक्षुः- केवली भगवानने अनन्त भव देखे होंगे वैसा होगा, ऐसे नहीं देखता।
समाधानः- भगवानने अनन्त भव देखे होंगे तो? तू पुरुषार्थ कर तो भगवानने तेरे भव देखे ही नहीं। तू पुरुषार्थ करता नहीं, तुझे करना नहीं है तो तेरा ऐसा ही देखा है। तू पुरुषार्थ कर तो भगवान ऐसा ही देखे की पुरुषार्थ करनेवालेको भव होते ही नहीं। तू करता नहीं इसलिये भगवानके ज्ञानमें ऐसा आता है, तू कर तो भगवानके ज्ञानमें ऐसा ही आये कि तेरा मोक्ष है। तुझे ही करना है।
मुमुक्षुः- अनन्त भव देखे होंगे तो क्या एक भी कम होगा? आपके देखे होंगे, मेरे नहीं देखे हैं। ऐसी श्रद्धा? मुझे आपके साथ नहीं रहना है। भाग गये। फिर श्रावक ले आये, महाराज! चलिये! ऐसी श्रद्धावालोंके साथ मुझे रहना ही नहीं है।
समाधानः- गुरुदेवका क्रमबद्ध कहनेका आशय अलग ही था। गुरुदेव, जैसा होना होगा वैसा होगा, ऐसा कुछ मानते ही नहीं थे कि भगवानने देखा होगा वैसा होगा। भगवानने ऐसे भव देखे होंगे तो? पुरुषार्थ करे उसके भव ऐसे देखे नहीं है भगवानने।