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है। पुरुषार्थकी क्षति हर जगह जुडी होती है।
मुमुक्षुः- ज्ञानीको ज्ञाताधारा प्रगट हुयी है, उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि उदयमें वह विवेक नहीं करता है। ऐसा आपको कहना है?
समाधानः- हाँ, वह उदयका विवेक नहीं करता है, ऐसा अर्थ नहीं है। मतलब बाहरका क्रमबद्ध और उदयधाराका क्रमबद्ध, उसमें पुरुषार्थका सम्बन्ध है, ऐसा वहाँ अर्थ नहीं है। उसे विवेक है कि मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे यह होता है।
मुमुक्षुः- वहाँ भी अशुभ छोडकर प्रवर्तता है और उसे भान भी है कि सब क्रमबद्ध है।
समाधानः- .. और पुरुषार्थ उठता हो तो मुझे यह कुछ नहीं चाहिये। मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे खडा हूँ। उदय है, उदय है, ऐसा नहीं है उसे।