Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-०५०

जाता है। जैसे देव-गुरु-शास्त्रको अर्पण होता है, वैसे ज्ञायकदेवको अर्पण होता है।

भगवानने ज्ञायकदेवको प्रगट किया है, गुरु ज्ञायकदेवकी स्वानुभूतिकी स्वानुभूति कर रहे हैं, साधना कर रहे हैैं, शास्त्र ज्ञायकदेवको बताता है। ऐसा ज्ञायकदेव यदि अंतरमें स्वयं लक्षण द्वारा पहचाने और उसकी महिमा आये तो उसमें भी अर्पणता हो जाती है। और मार्ग वही है। ज्ञायकदेवकी महिमा आये बिना मुक्तिका मार्ग प्रगट नहीं होता। ज्ञायकको पहचाने बिना और उसे अर्पण हुए बिना, मुक्तिका मार्ग प्रगट नहीं होता। उसे पहचानकर, उसकी श्रद्धा करके उसमें लीनता करे तो उसे स्वानुभूति प्रगट होती है।

एक ज्ञायकदेवको पहचाने बिना मुक्तिका मार्ग प्रगट नहीं होता। उसकी अर्पणता आवे तो ही मुक्तिका मार्ग प्रारंभ होता है। इसलिये उसे पहचानना। वही उसका उपाय है। अन्यसे राग टूटकर विरक्ति आकर अंतरमें ही अर्पणता आ जाय, वह आ सके ऐसा है। ज्ञायकदेवको पहचाने तो अर्पणता होती है।

मुमुक्षुः- देव-गुरु-शास्त्र तो सामने दिखते हैं इसलिये उनकी महिमा आती है, परन्तु आप कहते हो तब तो ऐसा ही लगता है कि एकदम आसान है। परन्तु जब प्रयोगमें तो तकलीफ होती है।

समाधानः- प्रयत्न करना मुश्किल पडता है। अनादिका अभ्यास है। जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र सामने दिखे इसलिये उनकी महिमा आये, यह दिखता नहीं। परन्तु ज्ञानलक्षणसे पहचाना जाय ऐसा है। अरूपी है इसलिये दिखता नहीं। परन्तु स्वयं ही है, दूसरा नहीं है। दूसरा हो तो ढूँढने जाना पडे। यह तो स्वयं ही है। उसे कहीं खोजने जाना पडे ऐसा नहीं है। लेकिन स्वयंका स्थूल उपयोग हो गया है, उपयोग बाहर जाता है। उपयोग बाहर जाता है उसे स्वयं स्थूल उपयोगको सूक्ष्म करके स्वयंको ज्ञानलक्षणसे पहचाने तो स्वयं ही है। पकडमें आये ऐसा है और उसकी अनुभूति हो सके ऐसा है। अनन्त जीवोंने ज्ञायकदेवको पहचानकर मुक्तिके मार्गको प्राप्त हुए हैं, उसकी स्वानुभूतिको प्राप्त हुए हैं। पहचाना जाय ऐसा है, पकडमें आये ऐसा है। परन्तु स्वयं प्रयत्न करे, उसकी जिज्ञासा करे, भावना करे, अभ्यास करे तो वह पकडमें आये ऐसा है। ग्रहण हुए बिना नहीं रहे। स्वयं ही है, क्यों पकडमें नहीं आये? अपनी भूलके कारण स्वयं बाहर अटका है। उसकी रुचि बाहर जाती है, इसलिये पकड नहीं सकता।

मुमुक्षुः- जीवका अस्तित्व बोलनेमें अथवा सीखनेमें आता है। परन्तु अन्दरसे अस्तित्वका जोर क्यों नहीं आता है?

समाधानः- बोलनेमें तो अस्तित्व-मैं हूँ। परन्तु अंतरमें मैं हूँ, वह विकल्प है। लेकिन मैं हूँ वह कौन हूँ? उसका अस्तित्व स्वयं गहराईमें जाय, उसे-अस्तित्वको खोजे