Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३२२ भी महिमावंत है और देव-गुरु-शास्त्र भी महिमावंत है। लेकिन उपयोगमें तो बाहर हो तब बाहरमें उपयोग है। अंतरमें तो अभी स्वयं गया नहीं।

मुमुक्षुः- आशंका ऐसी होती है कि स्व और पर दोनोंकी महिमा एकसाथ कैसे रह सके?

समाधानः- एक श्रद्धामें रहता है और एक उपयोगमें आता है, बाहर होता है तब। स्वयंकी महिमा आये। भगवानकी महिमा आये और अपनी आती है। ऐसे भी आता है, भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचाने, स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचानता है। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको पहचाने वह स्वयंको पहचानता है। स्वयंके द्रव्य-गुण-पर्यायको पहचानता है वह भगवानको पहचानता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। लेकिन उसे साथमें रहनेमें दिक्कत नहीं है। एक श्रद्धामें रहता है, एक उपयोगमें रहता है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!
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