मुमुक्षुः- प्रवचनसार शास्त्रमें भी है कि अरिहंतके द्रव्य-गुण-पर्यायको जो जाने, वह आत्माको जाने।
समाधानः- हाँ, उसमें आता है। अरिहंतके द्रव्य-गुण-पर्यायको जानता है वह आत्माके जानता है। स्वयंको जाने, वह भगवानको जाने। भगवानको जाने, वह स्वयंको जानता है। स्वयंको स्वंय देख नहीं सकता। भगवानके दर्शन करे, भगवानकी उसे महिमा आये। गुरुके दर्शन करे, गुरुकी वाणी सुने इसलिये गुरु पर, भगवान पर उसे महिमा आती है। उसमेंसे उसे विचार आते हैं कि भगवान माने क्या? भगवानका द्रव्य क्या? उनका आत्मा क्या काम करता है? उनको कौन-से गुण प्रगट हुए हैं? ऐसे विचार करता है।
भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायका जो यथार्थरूपसे विचार करता है, वहाँ अपने द्रव्य- गुण-पर्यायका विचार आता है कि भगवान आत्मा है। आत्मामें अनन्त गुण हैं। उन्होंने पुरुषार्थ करके प्रगट किये हैं। भगवानका आत्मा है वैसा मेरा आत्मा है। ऐसे भगवानको पहचानकर भी अपनी ओर जाता है। यदि यथार्थ पहचाने तो स्वयंको पहचानता है। यथार्थरूपसे पहचाने तो।
गुरु साधन कर रहे हैं। कोई वाणी अपूर्व बरसाते हैं। उनका आत्मा क्या काम करता है? ऐसे विचार करते-करते अपने आत्माका विचार आता है। शास्त्रके विचार (करता है)। शास्त्रमें तत्त्वकी बात आती है। उसमें उसे आश्चर्य लगता है। विचार करे कि शास्त्रमें यह बात आती है। उसमेंसे अपने विचार आते हैं।
लेकिन प्रत्यक्ष जो है वह परिणति पलटनेका कारण बनता है। एक बार प्रत्यक्ष देव और प्रत्यक्ष गुरु मिले तो अपनी परिणति-सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेका कारण बनता है। फिर शास्त्र, एक बार सुननेके बाद शास्त्र पढे वह अलग बात है। परन्तु प्रत्यक्ष होते हैं वह उसे परिणति पलटनेका कारण बनता है। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है।
मुमुक्षुः- अंतरना भावे वधाविए..
समाधानः- अंतरना भावे वधाविए।
मुमुक्षुः- वह भक्ति देखकर ऐसा लगता है कि ज्ञानीको किस प्रकार यह शुभराग