Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३२४ हेयबुद्धिसे आया है? वह कैसे बनता होगा? आपने दस मिनट ही वहाँ भक्ति करवायी थी, इस वक्त सबके बीच उतने भावसे नहीं बता सकता, लेकिन आपके भावपूर्वक जब भक्ति आती हो...

समाधानः- अंतरमें दोनों रहता है। एकत्व परिणति हो नहीं और भाव एकदम जोरदार आये। दूसरेको ऐसा लगे कि ऐसी कैसी भावना आती है? परिणति एकत्व हो नहीं और भिन्न रहकर भावना आये।

मुमुक्षुः- वही आश्चर्य उत्पन्न करता है।

समाधानः- ज्ञायककी परिणति भिन्न रहे और भावना भी ऐसी आये। आवो आवो पधारो भाविना भगवान, अंतरथी भावे वधाविए।

मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर। आपने जिस भावसे गाया था..

मुमुक्षुः- जगतका यह एक आश्चर्य है कि एकसाथ दो काम इस प्रकार होते हैं।

समाधानः- एक परिणतिमें है, एक उपयोगमें है। परन्तु भेदज्ञानकी धारा वैसी की वैसी चालू हो तो भी वैसे भाव आते हैं। उसमें उसे विरोध नहीं होता।

मुमुक्षुः- ज्ञानीकी इस स्थितिका, माताजी! अज्ञानीको अंदाज आना बहुत मुश्किल है।

समाधानः- शास्त्रमें आता है और गुरुदेव बहुत बार कहते थे कि ज्ञायककी धारा प्रगट होनेके बाद जो भावना आती है, उसकी स्थिति अधिक नहीं पडती परन्तु रस अधिक पडता है। उसे देव-शास्त्र-गुरु पर जो भावना आती है कि यह मेरी जो साधना है, यह ज्ञायककी धारा, चैतन्यदेव जिसने प्रगट किया है और उसकी जो साधना की है और उपकारी गुरु हैं, उन्होंने जो मार्ग बताया है, उन पर जो भाव आये, ज्ञायककी जो स्वयंको प्रीति है, उसमें जो निमित्त बने, जो उपकार किया है, वह जिन्होंने प्रगट किया है, उन पर जो भाव आता है, अंतरमें जो ज्ञायककी महिमा है, वह बाहर आये तो देव-गुरु-शास्त्र पर भी उसे ऐसी ही महिमा आती है। इसलिये उसका बहुत दिखता है कि मानो एकत्व हो जाता हो।

मुमुक्षुः- भाव तो माताजी! प्रत्यक्ष देखे हैैं कि कैसे भाव आ सकते हैं।

नथी कलगी के हार हेम कुंडना, नथी मोती माणेक महा मूलना,
मात्र हैयाना ऊँडा उमळका तैयार, अंतरथी भावे वधाविए।
तुम सेवा तणी घणी कामना, अमे जाप जपीए तुम नामना।
क्यांथी पगला पनोता भाविना भगवान, अंतरथी भावे वधाविए।
शांत सादा अमारा छे आंगणा, शांत सादा अमारा वधामणा,
मात्र
अंतरथी दइये वधाई, अंतरथी भावे वधाविए,
आवो आवो पधारो भाविना भगवान, अंतरथी भावे वधाविए।