Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३२६ भूलकर दृष्टि बाहर कर रहा है, स्वयं होने पर भी।

मुमुक्षुः- प्रश्न पूछुं? बहुत प्रयत्न करनेके बाद भी किसी भी प्रकारका मनोवांछित साहित्य पढनेकी प्रेरणा होने पर भी वह साहित्य, धार्मिक अथवा जो भी पढूँ, उस वक्त एकदम निद्रावश हो जाता हूँ, ऐसा लगता है, उसके लिये क्या कहना है?

समाधानः- स्वयंको उस प्रकारकी रुचि कम है। स्वयंकी महिमा स्वयंको लगती नहीं। बाहरकी प्रवृत्ति और बाहरका लौकिक कायाका रस लग रहा है। आत्मा कोई अलग है, उसका स्वयंको रस नहीं है, उसकी रुचि नहीं है। इसलिये उसका मन स्थिर नहीं हो रहा है। इसलिये यदि स्वयंकी महिमा आये, बाहरमें नीरसता लगे, बाहरमें चित्त लगे नहीं ऐसा हो तो स्वयंके अन्दर चित्त लगे। बाहरका रस एकदम तीव्र हो तो स्वयंकी ओर जा नहीं सकता। बाहरका रस उसे टूटे, बाहरका रस मन्द हो, बिलकूल तो छूटता नहीं, परन्तु मन्द रस करे और आत्माका रस बढाये, आत्माकी महिमा बढाये कि आत्मामें सर्वस्व है, आत्मा कोई अनुपम वस्तु है, आत्मा कोई अलौकिक है। उसकी महिमा आये तो उस ओर उसकी रुचि हो।

आत्माका क्या स्वरूप है, उस ओर उसकी लगनी लगे। परन्तु स्वयंको रस ही कम है। रस कम है इसलिये प्रमाद होता है। बाहरमें बाहरके प्रयत्न होते हैं, इसलिये अंतरमें होता नहीं। रस बाहरका लगा है। बाहरका रस मन्द हो और अंतरकी ओर रस जाय कि आत्मा क्या वस्तु है? सुख आत्मामें है, बाहर नहीं है। ऐसे अन्दरसे निर्णय होना चाहिये। सच्चा निर्णय नहीं हो रहा है, इसलिये बाहर भटकता रहता है।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- स्वयंके प्रयत्नसे लक्ष्य बदलना। दृष्टि और उपयोग दोनों सब बाहर ही जा रहे हैं। उसे बदलाये कि यह ज्ञायक मैं हूँ। यह विकल्प जाननेमें आता है, यह शरीर दिखता है वह बाहरका दिखता है। उसके पीछे जो ज्ञान है ज्ञानलक्षण, वह ज्ञानलक्षण है वही मैं हूँ। उस ओर अपनी दृष्टिको बदल देना। उसके लिये प्रयत्न करे कि यह ज्ञानलक्षण है वह मैं हूँ। वह लक्षण मात्र नहीं, परन्तु वह वस्तु ही मैं हूँ। मैं ज्ञायक हूँ। ऐसे दृष्टि बदलनेका प्रयत्न करे। बारंबार प्रयत्न करे। दृष्टिको वहाँ स्थिर करे और उसकी श्रद्धा करे, उसका ज्ञान करे। यही मैं हूँ, ऐसे बारंबार, बारंबार, बारंबार करे तो ज्ञायक लक्ष्यमें आये। बारंबार करे।

अनादिका अभ्यास है इसलिये बाहरका सब जाननेमें आता है। अंतरमें बारंबार श्रद्धा स्थिर करनेके लिये प्रयत्न करे। बारंबार करे। यह ज्ञान मैं हूँ, यह मैं नहीं हूँ। इस ज्ञायकमें ही सब है। बाहरमें नहीं है, ऐसे बारंबार प्रयास करे तो होता है। जोजो विकल्प आये, उसके पीछे जो ज्ञान रहा है, जाननेवाला है, वह जाननेवाला मैं हूँ।