Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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वह सब पर्यायें तो चली जाती हैं, विकल्पकी, विभावकी सब, और जाननेवाला खडा रहता है। जो-जो बना वह सब जाननेवालेको ख्याल है कि यह हुआ, यह हुआ। वह जाननेवाला जो है, वह जाननेवाला ही मैं हूँ। उसका अस्तित्व ग्रहण करे, बारंबार करे। बारंबार प्रयत्न करे। जबतक नहीं हो तबतक उसका प्रयास करता रहे, बारंबार करता रहे। नहीं होत तबतक उसके विचार, उसका वांचन आदि सब करे। स्वाध्याय (करे)। आत्मा सम्बन्धित जिसमें स्वयंको रस आये वह करता रहे, बारंबार करता रहे। गुरुने क्या कहा है, शास्त्रमें क्या आता है, वह सब बारंबार करता रहे, दृष्टि बदलनेके लिये।

अन्दरकी रुचि बढानी चाहिये। अंतरकी महिमा आये। कहीं भी स्थिर हो जाना वह योग्य नहीं है, परन्तु सत्य क्या है, यह नक्की करना पडे। कोई भी साहित्य और कुछ भी पढना (ऐसा नहीं होना चाहिये)। आत्मा सम्बन्धित हो वही भवके अभावका कारण है। दूसरा कुछ भवके अभावका कारण नहीं होता। भवका अभाव करनेके लिये सत्य क्या है, यह नक्की करके उस ओरका प्रयत्न करे तो भवका अभाव होता है।

... दृढता हो गयी, परन्तु उसकी विशेष दृढता, अन्दर गहराईसे विशेष दृढता (करनी)। यह सत्य है, लेकिन वह पदार्थ कौन है? ज्ञानस्वरूप आत्मा ज्ञायक कौन है? उसे प्रगट करनेके लिये उसकी श्रद्धा करके बारंबार प्रयत्न करे। सत्य यह है, परन्तु उस प्रकारसे अन्दर स्वयंको पहचान होनी चाहिये। उस प्रकारसे उसकी श्रद्धा, उसकी प्रतीत, उसका ज्ञान, उसकी दृढता होनी चाहिये। अन्दर गहराईसे कैसे प्रगट हो, ऐसे उसकी रुचि लगनी चाहिये। श्रद्धा हो, विकल्पसे श्रद्धा की परन्तु अंतरमें स्वयंको लगना चाहिये कि सत्य यही है। उसकी महिमा लगनी चाहिये। बाहरकी सब महिना छूट जाय। अंतरमें लगना चाहिये। बारंबार श्रद्धाको दृढ करे। वस्तु है उसको पहचाननेका प्रयत्न करे, उसे खोजनेका प्रयत्न करे। बारंबार उसे खोजे। यह ज्ञायक है, उस पर दृष्टि, उसका ज्ञान, उसके भेदज्ञानका बारंबार प्रयास करे। मैं तो भिन्न ही हूँ, यह सब भिन्न है। यह विभाव भी मेरा स्वभाव नहीं है। उससे भी मैं भिन्न हूँ। ऐसे बारंबार दृढता करता रहे।

मुक्तिका मार्ग, उसे आत्माका-स्वभावका रस लगा तो वह कैसे प्रगट हो और कैसे मेरे हाथमें आये, ऐसे बारंबार प्रयत्न करता रहे। श्रद्धामात्रसे, विकल्पसे जान लिया तो वैसे प्रगट नहीं होता। परन्तु उसका आगे-आगे प्रयास करता रहे, उसे प्रगट करनेके लिये। प्रयोजनभूत बराबर यथार्थ जानकर उसकी श्रद्धा करके, वह कैसे प्रगट हो उसका बारंबार प्रयत्न करे।

मुमुक्षुः- ज्ञान प्रकाश करता है और श्रद्धा है वह शक्तिओंको पचाती है, वहाँ क्या कहना है?