३३८ वही श्रेयभूत है।
किसीको किसीके साथ सम्बन्ध नहीं है। मात्र पूर्वके कोई सम्बन्धके कारण जीव किसीके घर जन्म लेता है। उसका आयुष्य परा हो तो उसकी मृत्यु होती है। किसीका किसीके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। आत्मा स्वयं अकेला जन्मता है, अकेला मरता है, उसके साथ कोई आता नहीं। जीव जन्म-मरण करनेवाला, अपने पुण्य-पापके कारण जन्म-मरण करनेवाला अकेला है और मोक्ष जानेवाला भी अकेला ही है। इसलिये पुरुषार्थ करके जीवको पलटकर, परिणाम पलटकर आत्माका कल्याण कैसे हो? उसका विचार, वांचन आदिमें चित्त लगाना।
मैं तो एक ज्ञायक शाश्वत आत्मा, सिद्ध भगवान जैसा आत्मा हूँ। मुझे किसीके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। आयुष्य पूरा होता है, सबका आयुष्य पूरा होता है। अतः शांति और समाधान रखना वही श्रेयरूप है। बाहरमें जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्रमें चित्त लगाना। अन्दरमें आत्मा कैसे प्राप्त हो? आत्मा जाननेवाला, उसका भेदज्ञान कैसे हो? यह शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है। दो भिन्न-भिन्न वस्तुएँ हैं। आत्मा शाश्वत है। शरीरके फेरफार होते हैं। एक भव छोडकर, दूसरा भव शुरु हो जाता है। दूसरा भव धारण करता है।
आत्मा वही शाश्वत रहता है। इसलिये शुभभाव-अच्छे भाव करके आत्माका कल्याण कैसे हो, वही करने जैसा है। वही सारभूत है, बाकी सब जगतमें तुच्छ है। कोई सारभूत वस्तु ही नहीं है। जीव यह माने कि यह सब अच्छा-अच्छा है। वह सब बाह्य पुण्य-पापके प्रकार है। पुण्यका फेरफार कब हो, वह किसीके हाथकी बात नहीं है। इसलिये आत्माका कल्याण कर लेना वही सारभूत है।
मुमुक्षुः- ... संसारकी प्रवृत्ति हो, उसके साथ आत्मकल्याणका सीधा रास्ता कौनसा है? आत्माका कल्याण करना वह तो बराबर है। परन्तु बाह्य प्रवृत्ति तो होती है, उसमें किस प्रकार समय..
समाधानः- अन्दर आत्माकी रुचि अंतरमें रखनी। संसारमें एकत्वबुद्धि कम करके मुझे आत्माका करना है, ऐसी रुचि अन्दर रखनी। और बाहरसे समय मिले तब शास्त्रवांचन करना, गुरुदेवने जो समझाया है, गुरुदेवके शास्त्र, गुरुदेवके प्रवचन जिसमें समझमेें आये वह वांचन करना। समय मिले तो सत्संग करना। कोई वांचन करता हो ऐसे मन्दिरमें जाना। भगवानके दर्शन आदिमें ही समय व्यतीत करना। सांसारिक प्रवृत्ति चलती हो तो भी उसमेंसे समय मिले तो शास्त्र स्वाध्याय करे। मन्दिर जानेका समय नहीं हो तो घरमें बैठकर शास्त्र पढना। उसमें समझमें नहीं आये तो शास्त्र वांचन आपके यहाँ मन्दिरमें भी चलता होगा, वहाँ जाना। अथवा जहाँ कोई शास्त्र समझाता हो, वहाँ