Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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जाना, मन्दिर जाना। उसमें समय (व्यतीत करना)। देवदर्शन, पूजा, भक्ति, शास्त्र स्वाध्याय आदिमें समय (व्यतीत करना)। जो समय बचे उसमेंसे उसमें समय व्यतीत करना। और आत्माका कल्याण कैसे हो? सत्य मार्ग क्या है? इन सबका विचार करना।

यह सब शुभभाव है, परन्तु उसमें आत्माका कल्याण कैसे हो, उसका विचार करना उसमेंसे। सांसारिक प्रवृत्ति चलती हो उसमेंसे समय निकालकर भी अमुक समय शास्त्र स्वाध्याय करना है। समय निकालना। उसके विचार (करना)। अन्दर खटक रखनी कि यह सब तो संसार है। मनुष्य जीवन ऐसी ही सब प्रवृत्तिमें चला जाता है। आत्माका कुछ करें, ऐसी अन्दर खटक, रुचि रखनी और शास्त्र स्वाध्याय (करना)। देव-गुरु- शास्त्रकी महिमा, पूजा, भक्ति, शास्त्र स्वाध्यायका समय उसमेंसे निकाल लेना।

मुमुक्षुः- जो सांसारिक ग्रुप हो उसके साथ मनका समाधान कर लेती हूँ।

समाधानः- मनका समाधान कर लेना? मनको बदल देना कि संसारका स्वरूप तो ऐसा ही है। वह तो अपने पूर्वमें बाँधे हुए पुण्य-पापके उदय है, वह आते ही रहते हैं। संसारका स्वरूप ही ऐसा है। मनको बदल देना। किसीका कोई कुछ नहीं कर सकता। वह तो पुण्य-पापके उदय है, आते ही रहते हैं। इसलिये मनको बदलकर आत्माका स्वरूप क्या है? आत्मा कैसा है? आत्मा कोई अपूर्व चीज है, अनुपम है, वह मुझे कैसे प्राप्त हो? यह सब फेरफार (होते हैं)। शाश्वत कुछ दिखता नहीं। अन्दर शाश्वत आत्मा है, वह मुझे कैसे प्रगट हो? उसकी रुचि करनी।

संसारिक सुख-दुःख तो पूर्वके पुण्य-पापके उदय हैं। पूर्वमें जो स्वयंने पापके परिणाम किये हों, उसका उदय है। पुण्य परिणाम किये हों तो उसके उदय आते हैं। भवका अभाव कैसे हो? उसके विचार करना। आत्मा कौन है? आत्माका स्वरूप क्या है? पुण्य-पापके उदय सर्वको आते हैं। पुण्य-पापके उदय तो संसारमें पडे ही हैं। चाहे जितने पुण्यशाली हों तो उसे भी पापके उदय तो इस मनुष्य जीवनमें पडे ही हैं। पुण्य और पाप दोनों साथ जुडे हैं।

... उसे किसी भी प्रकारकी कमी नहीं थी। अकेले पुण्यका ढेर था। जो इच्छा हो उसके अनुसार सब हाजिर हो। ऐसे चक्रवर्ती हो तो भी उसे रोग हुआ था। इसलिये पुण्य और पाप दोनों संसारमें होते ही हैं। उसका रूप देखनेको ऊपरसे देव आते हैं। मैं श्रृंगार सजकर आऊँ तब देखना। देव कहते हैं कि अभी आपका रूप बदल गया है। आपके शरीरमें रोगका प्रवेश हो गया है। चक्रवर्तीको ऐसा वैराग्य आता है कि वह सब छोडकर मुनि बनकर चल देते हैं। संसारमें यह सब पडा ही है।

पहले एकदम पुरुषार्थ उठता था इसलिये सब मुनि बन जाते थे। अभी वह छोडनेसे धर्म हो जाय (ऐसा नहीं है)। अंतरमेंसे स्वयं निर्लेप रहकर स्वरूपको पहचानकर अंतरमें