Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

३४० हो सकता है। गृहस्थाश्रममें रहकर भी हो सकता है। स्वयं अंतरकी रुचि प्रगट करे। अन्दर संसारका रस कम कर दे। अन्दरसे एकत्वबुद्धि तोड दे। विचार, वांचनमें चित्त जोड दे। तो हो सकताहै।

मुमुक्षुः- व्यवहारिक तौरसे जो संसारमें करना है, उसे अधिक महत्ता देनी या स्वयंके आत्माकी महत्ता अधिक देनी?

समाधानः- आत्माको ज्यादा महत्त्व देना। वह तो उसमें बैठा है इसलिये करना पडता है। बाकी महत्त्व आत्माको देना। वह महत्त्वपूर्ण वस्तु नहीं है-सांसारिक कार्य महत्त्वके नहीं है। वह तो स्वयंका राग है इसलिये उसमें जुडता है।

मुमुक्षुः- .. उसके पीछे ज्यादा समय देकर.. या अपने आत्माके कल्याणके लिये...

समाधानः- भला होता हो उसमें स्वयंको राग होता है। परन्तु स्वयं दूसरेका कुछ कर नहीं सकता। दूसरेका भला स्वयं नहीं कर सकता। उसका पुण्य-पापका उदय होता है उस अनुसार बनता है। सामनेवालेका भला हो, वह स्वयं नहीं कर सकता है। स्वयंको राग आता है। जैसा स्वयंको राग आता हो, उस राग अनुसार वहाँसे छूट जाय। उसे जो भाव आते हो, नहीं रह सकता हो, गृहस्थाश्रममें है इसलिये। बाकी स्वयंको जो करना है, उसे गौण नहीं किया जा सकता। कभी-कभार समय नहीं मिले तो स्वयं अन्दर रुचि रखे। समय निकालनेका प्रयत्न करे, अन्दर रुचि रखे। बाकी महत्त्व तो आत्माका ही है, बाह्य कायाका नहीं है।

मुमुक्षुः- पुण्य उपार्जन कैसे...

समाधानः- आत्माकी ओर रुचि रखे तो पुण्य भी उसमें होता है, सबकुछ उसमें ही होता है। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और आत्माकी ओरकी रुचि, पुण्यमें भी उसमें होता है। सबकुछ उसमें ही होता है। जो जीव पुण्यको इच्छता है, तो भी वह देव- गुरु-शास्त्रकी महिमामें होता है। बाहरके कायासे, आत्मा मिले ऐसे पुण्य बाह्य कायासे नहीं होता। वह सब सामान्य पुण्य होता है।

जिनेन्द्र देव, गुरु, शास्त्र सर्वोत्कृष्ट है। मोक्ष भी भगवानने बताया। भगवानने, गुरुने मोक्ष बताया। मोक्ष भी उनकी शरणमें होता है। पुण्य भी उनकी शरणमें होता है और मोक्ष भी उनकी शरणमें ही होता है, कहीं और नहीं है। किसीको पूछना ही नहीं पडे। आत्माकी कोई अलग प्रकारकी ही अनुभूति होती है, वह किसीसे पूछना नहीं पडे। अपना आत्मा ही उसे जवाब देता है। किसीको पूछना नहीं पडे। अभी तो उसके लिये कितनी तैयारी हो, तब होता है।

अभी तो आत्मा कोई अपूर्व वस्तु है, उसे पहचाननेके लिये कितना प्रयत्न होता है तब होता है। अंतरमेंसे कितना निराला हो, अंतरमेंसे कितनी उसे लगनी लगी हो,