Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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आत्मा-आत्माके सिवा कहीं चैन नहीं पडती हो। मुझे आत्मा ही चाहिये। संसारकी ओरकी रुचि उठ जाय। बाहरसे भले ही संसारमें बैठा हो, परन्तु संसारकी रुचि उठ जाय। आत्मा.. आत्माकी पुकार उसे होती है, तब जाकर आत्माकी अनुभूति होती है। वैसे अनुभूति नहीं हो सकती।

अंतर लगनी लगे, उसे आत्माके बिना चैन नहीं पडे। उसे आत्मा भूलाया नहीं जाता। मुझे मेरा आत्मा चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। उतनी लगनी लगे, तब उसे आत्मा प्राप्त होता है। संसारमें कुछ प्रतिकूलता आयी हो, ऐसी सब, तो वह कैसे भूलायी नहीं जाती? वैसे उसे आत्मा भूलाया नहीं जाता। मुझे मेरे आत्माके सिवा कहीं चैन नहीं पडती। हर जगहसे उसकी रुचि उठ जाय। कहीं भी रस नहीं आये। तब उसे आत्मा प्राप्त होता है।

संसारके बाह्य कायामें जुडता हो, तो उसे संसार-लौकिक व्यवहार परसे रुचि उठ जाती है और रुचि आत्माकी ओर जाती है। उसका पूरा परिणमन पलट जाता है। उसकी पूरी दिशा पलट जाती है।

मुमुक्षुः- संसारमें रहें, परन्तु उसमें कोई भी व्यक्ति स्वयं आत्माको पहिचानकर मोक्ष भी प्राप्त कर सके?

समाधानः- संसारमें रहकर आत्माकी स्वानुभूति-आंशिक मुक्ति हो सकती है। संसारमें रहकर। फिर संपूर्णता प्राप्त करनेके लिये तो उसे बाहरसे भी त्याग हो जाता है। संसारमें रहकर पूर्ण मोक्ष नहीं होता है। परन्तु आत्माको पहचान सकता है, आत्माकी स्वानुभूति होती है, आत्माका ज्ञान प्राप्त होता है। यहाँ तक होता है। भगवका अभाव होता है। सिद्ध भगवान जैसी आंशिक अनुभूति उसे होती है। लेकिन उसे मोक्ष, पूर्ण मोक्ष केवलज्ञान नहीं होता। बाहरसे सब त्याग हो जाता है, मुनि बन जाता है, तब पूर्ण मोक्ष होता है।

मुमुक्षुः- ... फिर कई बार मैं ... करती हूँ।

समाधानः- वह सब व्यर्थ है, निःसार है, निष्फल है मोह रखना। जहाँ जाये वहाँ, देवमें गया हो तो देवके परिचयमें पड जाय, मनुष्यमें गया तो मनुष्यके जो परिचीत हों उसमें पड जाता है। उसे तो कुछ याद नहीं होता। सब सम्बन्ध टूट जाय। यहाँ आप राग रखते हो, उतना ही। राग रखना भी मुश्किल है।

मुमुक्षुः- .. कहते हैं, देवगतिमें ..

समाधानः- सबको ऐसा नहीं होता। सब देखे और सबको राग हो, ऐसा सबको नहीं होता। कोई-कोईको होता है।

मुमुक्षुः- ..