०५७
समाधानः- वह सब बातें करने कहाँ बैठी हूँ। सब सहज है। अन्दर आये तो बाहर.. गुरुदेवका और सबका आये।
मुमुक्षुः- गुरुदेवने ही कहा है,..
समाधानः- गुरुदेवने तो बहुत कहा है, परन्तु मेरी जबानसे नहीं कहना होता।
मुमुक्षुः- हमे तो कभी..
समाधानः- लेकिन वह तो आप सबको मालूम ही है, नया क्या कहना है?
मुमुक्षुः- अभी तो बहुत बाकी है, बहन! अभी तो एक रूपयमें चार आना भी बाहर नहीं आया है।
समाधानः- गुरुदेवने कहा है कि गुरुदेव भगवान-तीर्थंकर होनेवाले हैं। वह सब तो बाहर आया ही है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! अभी तो यहाँ ऐसी भी बात चलती थी कि गुरुदेव साक्षात पधारते हैं।
समाधानः- सब ऐसा ही बोलते हैं। सब बातें हैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेव तीन लोकको आह्वान करते हैं, ऐसे स्वप्न..
समाधानः- गुरुदेवको स्वप्न आता था। गुरुदेवको स्वप्न आते थे कि मैं तीर्थंकर हूँ। मैं तीर्थंकर होनेवाला हूँ। ऐसे सब स्वप्न (आते थे)। गुरुदेवको ॐ ध्वनि स्वयंको आती थी। वह उनको आता था। मुझे तो मालूम भी नहीं था कि गुरुदेवको ऐसे स्वप्न आते हैं। मुझे मालूम नहीं था। गुरुदेवको तो आते थे, मुझे तो बादमें आया। गुरुदेवको तीर्थंकर होनेके स्वप्न आते थे। पहली बार ॐ वहाँ आया, दूसरी बार उमराला और तीसरी बार विंछीयामें। विंछीयामें थोडा ज्यादा आया। पहली शुरूआत वांकानेर, फिर उमाराला, फिर विंछीया।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! कुन्दकुन्दस्वामी तो एकदम प्रत्यक्ष दिखाई देते होंगे न।
समाधानः- जो स्मरणमें आये वह तो ऐसे ही आये न।
मुमुक्षुः- मुनिका स्वरूप नग्न ही होता है, उसके लिये तो कोई.. वह तो एकदम विश्वासपूर्वक..
समाधानः- उसका तो कोई प्रश्न ही नहीं है। वह तो विदेहक्षेत्रमें धोख मार्ग चल रहा है। मुनिओंके झुंड जहाँ विचरते हैं।
मुमुक्षुः- सीमंधर भगवान कैसे विराजते हैं।
समाधानः- साक्षात सीमंधर भगवान विराजते हैं, भगवानकी दिव्यध्वनि छूट रही है।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! इतनी प्रतिष्ठाएँ हुयी, उसमें..
समाधानः- प्रतिमा वैसी लगनी तो मुश्किल है। साक्षात भगवानकी तो क्या बात