३४६ करनी!
मुमुक्षुः- फिर भी कोई आकृति वैसी आ गयी हो कि इतने प्रतिमाजीमें यह एक प्रतिमाजी ऐसे लगते हैं कि मानो सीमंधर भगवान हो।
समाधानः- पाँचसौ धनुषका देह और वह आकृति, साक्षात भगवान जीवंत मूर्ति, वह सब आकृति आनी मुश्किल है। नासाग्र दृष्टि, ध्यान मुद्रा, दिव्य मुद्रा, यहाँ सोनगढमें ही वैसी है। तो भी साक्षात तो साक्षात ही होती है।
मुमुक्षुः- फिर भी वांकानेरमें प्रतिमाजी हैं..
समाधानः- विदेहक्षेत्रमें विराजते भगवान यहाँ थोडे ही आ जाते हैं। समवसरणमें विराजमान, साक्षात दिव्यध्वनि.. लेकिन वह तो जिनप्रतिमा जिन सरिखा, कहते हैं न? जिनप्रतिमा भी जिन सरिखा कहलाती है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव कहते थे न, बहन तो यहाँ बैठकर विदेहके भगवानके दर्शन करती है। भरतमें है कि विदेहमें है, भूल जाती है।
समाधानः- भगवानने ही कहा है कि यह राजकुमार तीर्थंकर होनेवाले हैं। भगवानकी वाणीमें आया है। तीर्थंकर जगतमें सर्वोत्कृष्ट होते हैं। भगवानकी रत्नमय प्रतिमाएँ, ऐसा जगतमें कुदरती तीर्थंकरकी प्रतिमाएँ रत्नरूप हो जाती हैं। जगतमें सर्वोत्कृष्ट हों तो तीर्थंकर भगवान ही है।
मुमुक्षुः- मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी, मंगलं कुन्दकुन्दार्यो..
समाधानः- गुरुदेवका स्वप्न था, तीन लोकको आह्वान करते हैं। तीन लोकको। तीन लोकको कौन आह्वान करे? जो तीनलोकसे ऊँचा हो वह। अओ रे.. आओ! हितके लिये आओ! तीन लोकको कौन आह्वान करे? गुरुदेवके स्वप्न भी ऐसे।
मुमुक्षुः- जो तीर्थंकर हो वही करे न।
समाधानः- तीन लोकको आह्वान कौन करे? .. मार्ग चलता है, वह दिगंबर मार्ग (चलता है)। मुनिओंके झुंडके झुंड विदेहक्षेत्रमें हैं। मुझे मालूम नहीं था कि गुरुदेव मानते हैं। उनको कहनेसे क्या लाभ? अपने तो ऐसा विचार आये। गुरुदेव ऐसे ही थोडा मान ले। गुरुदेवको स्वयंको ही अन्दर था कि मैं तीर्थंकर होनेवाला हूँ। भगवानकी बात सुनकर उत्साह तो आये न। त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब क्या चाहिये? उतना उत्साह था।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब क्या चाहिये? भगवानने कहा तीर्थंकर होनेवाले हैं। अर्थात त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, अब क्या चाहिये?
मुमुक्षुः- तीर्थंकर होनेवाले हैं, ऐसा माताजीने कहा तो गुरुदेवको ऐसा हो गया..