००८
है कि अरे..! यह दुःख है। ऐसे बार-बार विकल्प नहीं करता। उसकी धारा ही भिन्न वर्तती है।
मुमुक्षुः- ज्ञायकका लक्षण है उसे..
समाधानः- ज्ञायकका लक्षण ज्ञान लक्षण है। ज्ञान लक्षण ऐसा असाधारण लक्षण है। गुजरातीमें बोलती हूँ। ज्ञान लक्षण आत्माका असाधारण है और उसके द्वारा ज्ञायक पहचाना जाता है। गुणसे गुणी पहचाना जाता है। गुण-गुणीका भेद आत्मामें है, वह वास्तविक भेद नहीं है, लक्षणभेदसे भेद है। लेकिन उस लक्षणसे-गुणसे गुणी पहचाननेमें आता है। वह ज्ञानलक्षण-गुण ऐसा असाधारण है कि उस ज्ञान द्वारा आत्मा गुणी- ज्ञायक है, वह पहचाना जा सकता है। और गुरुदेवने बहुत दर्शाया है।
आत्मा जाननेवाला है, ज्ञायक है, आत्मामें सब भरा है, आत्मा अपूर्व है और यही करने जैसा है। सम्यग्दर्शन होते ही मुक्तिका मार्ग प्रगट होता है। ज्ञान लक्षणसे ही आत्मा पहचाना जाता है। आत्माका लक्षण ही वह है। ये सब लक्षण दिखाई दे वह बाह्य लक्षण है। ये सब जड परपदार्थका लक्षण है। यह जड शरीर कुछ जानता नहीं, जाननेवाला एक आत्मा ही है। उस आत्माको पहचानना। ज्ञायक लक्षण। उसमें अखण्ड ज्ञायकको पहचानना।
ज्ञायककी भक्ति यानी अन्दर ज्ञायककी महिमा आनी चाहिये। ज्ञायक कौन है? ज्ञायक कोई अपूर्व वस्तु है, अनुपम है, वह कोई अलग चीज है। उसकी भक्ति, उसकी महिमा आनी चाहिये। ज्ञायक कोई अनुपम है।
गुरुदेव कहते थे, वास्तविक प्रभात-अन्दर नया प्रभात अन्दर सम्यग्दर्शन होता है तब प्रगट होता है। और उस प्रभातमेंसे पूरा केवलज्ञान-सूर्य उसमेंसे प्रगट होता है। इस पंचमकालमें गुरुदेव पधारे और पंचमकालमें गुरुदेव यहाँ पधारे वही इस जैनशासनमें गुरुदेव पधारे वही प्रभात था। कोई कुछ जानते नहीं थे, कुछ नहीं जानते थे। क्या मार्ग है, स्वानुभूतिका मार्ग जानते नहीं थे। स्वानुभूतिको कोई नहीं पहचानते थे। वैसेमें स्वानुभूतिका पंथ बताया।
अंधकार व्याप्त हो गया था। स्वानुभूतिका नाम किसीको नहीं आता था कि अन्दर स्वानुभूति हो वही यथार्थ मुक्तिका मार्ग है। कोई जानता नहीं था। मुक्तिका मार्ग सब क्रियासे जानते थे। बाहरसे थोडे सामायिक, प्रतिक्रमण कर ले, थोडा सीख ले तो माने कि इससे मोक्ष हो जायेगा। मोक्षको कोई पहचानते नहीं थे। स्वानुभूतिका पंथ गुरुदेवने प्रकाशित किया। स्वानुभूति गुरुदेवने बतायी, मुनिका स्वरूप गुरुदेवना बताया, केवलज्ञानीका स्वरूप गुरुदेवने बताया। सब गुरुदेवने बताया। जिनेन्द्रदेव कैसे होते हैं, यह गुरुदेवने बताया। सच्चे शास्त्र कैसे हो वह गुरुदेवने बताया। सब गुरुदेवने बताया।