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जिनेन्द्र भगवान जगतमें सूर्य समान हैं और उनकी जो प्रतिमा हैं, उनका प्रतिबिंब, वह प्रतिमा भी गुरुदेवके प्रतापसे पधारे हैं। सब गुरुदेवका प्रताप है। गुरुदेव जैनशासनमें इस भरतक्षेत्रमें पधारे वही एक प्रभात है। सूर्य समान गुरुदेव ही थे। देव-गुरु-शास्त्र ही इस जगतमें सुप्रभात है और उनके निमित्तसे अन्दर जो उपादान तैयार होकर जो सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, वह अन्दरमें एक सुप्रभात है। नूतन वर्ष वह प्रगट होता है।
गुरुदेव एक नवीनता इस भरतक्षेत्रमें ले आये कि जो कोई नहीं जानता नहीं था। सत्य पंथ बता दिया। उस सत्य पंथ पर सब मुडे हैं। सत्य पंथकी एक नवीनता आयी है, वही वास्तविक नवीनता है। सम्यग्दर्शन प्रगट होता है, वहाँसे केवलज्ञान प्रगट होता है। यहाँ अंधकार व्याप्त हुआ था, उसमेंसे सम्यग्दर्शनका पंथ, स्वानुभूतिका पंथ दर्शाया है। यह एक नवीनता है।
गुरुदेवने इतने सालसे जो उपदेश दिया है और जो उपदेशकी जमावट करके अन्दरमें स्वयंने जमावट की और उस पंथ पर स्वयं प्रयाण करे वही एक नवीनता है। और वही पंथ ग्रहण करना, वही एक नवीनता है। वास्तविक सुप्रभात तो सम्यग्दर्शनसे होता है, लेकिन उसके पहले भी गुरुदेवने यह पंथ बताया और उस उपदेशकी जमावट की उसे स्वयं ग्रहण करे तो उस रास्ते पर चले। वही अन्दरमें एक नवीनता प्रगट करनेके पंथ पर स्वयं चले तो भी अच्छा है। वास्तविकरूपसे ज्ञायकका पंथ ही ग्रहण करने जैसा है। ज्ञायकका पंथ, उसका निमित्त कौन? सच्चे देव-गुरु-शास्त्र।
जो भगवानको पहचानता है, वह स्वयंको पहचाने। स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचानता है, ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। बाहरसे देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति और अन्दर ज्ञायककी भक्ति, ज्ञायककी महिमा आये तो ज्ञायककी ओर मुडता है। गुरुकी भक्ति आये, गुरु क्या स्वानुभूतिका मार्ग बताते हैं! गुरुदेव क्या अनुपम आत्माका स्वरूप बताते हैं! ऐसे आत्माकी भक्ति और महिमा स्वयंको आये तो उस ओर स्वयं मुडता है। मैं ऐसे आत्माके कैसे दर्शन करूँ, आत्माको कैसे निरखता रहूँ, कैसे देखुँ, इसप्रकार भक्तिसे ज्ञायककी ओर मुडे तो मुड सकता है। मात्र आत्मा ज्ञानलक्षण, ज्ञानलक्षण (है), ऐसे विचारसे नक्की करे, परन्तु उसकी महिमा नहीं आये तो उस ओर मुड नहीं सकता।
गुरु कैसे ग्रहण हो? कि गुरु जो कहते हैं, द्रव्य-गुण-पर्यायका स्वरूप कोई अपूर्व रीतिसे स्वयं ग्रहण करे तो उसे गुरुकी कुछ महिमा आये, तो उसने गुरुको ग्रहण किये हैं। गुरुकी महिमा, जिनेन्द्रदेवकी महिमा। गुरुदेवने शास्त्र बताये हैं। शास्त्रको कोई जानता नहीं था। दूसरे सब श्वेतांबरके शास्त्र थे उसे सब शास्त्र मानते थे। सच्चे शास्त्र कौन- से हैं, वह भी गुरुदेवने बताया है। गुरुदेवका ही परम उपकार है। और उसी पंथ पर प्रयाण करके उसमें ही नवीनता लानी, ज्ञायकके पंथ पर चलना वही वास्तविक