Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, वहाँ सर्वज्ञदेव उसमें निमित्त होते हैं। गुरु अथवा सर्वज्ञदेव निमित्त होते हैं, परन्तु उपादान अपना होता है। मूल कारण तो स्वयं होता है। परन्तु निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है कि निमित्त होता है। गुरुने इतना उपदेश दिया। गुरु और देव सब निमित्त हैं।

अनादि कालसे अनजाना मार्ग, उसमें ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। एक बार साक्षात गुरु अथवा देव मिले, तब जीवकी परिणति अपनी ओर होती है। होती है अपनेसे। दूसरा कोई कर नहीं देता, अपने पुरुषार्थसे होता है।

मुमुक्षुः- दूसरा एक प्रश्न है, बहिनश्री! आस्रवभाव झहर जैसा है। उसमेंसे उसकी मारनेकी शक्ति निकाल देनेमें सम्यग्दृष्टि जीव समर्थ है, वे कौनसी विद्याके बलसे वैसा कर सकते हैं?

समाधानः- आस्रवभाव झहर है, परन्तु उसे ज्ञायक स्वभाव, ज्ञान-वैराग्यकी ऐसी शक्ति प्रगट होती है, सम्यग्दृष्टिको। यह विभाव है, मेरा स्वभाव नहीं है। उससे भिन्न होकर उसे अंतरमेंसे ऐसी ज्ञान-वैराग्यकी शक्ति प्रगट होती है। इसलिये उसका जो झहर है वह निकल जाता है। एकत्वबुद्धिका जो रस था, विभावके साथ एकत्वबुद्धिका रस टूट जाता है। अनन्त रस जो अनंतानुबन्धीका था वह रस टूट जाता है। इसलिये उसका जो झहर-एकत्वबुद्धिका और अनंतानुबन्धीका रस था वह झहर टूट जाता है और स्वरूपकी ओर उसे अनन्त रस लग जाता है। ऐसा अनन्त रस ज्ञायक स्वभावको रस ग्रहण करके वह रस ऐसा लगता है कि वह विभावसे भिन्न ही रहता है। उसे विभावका रस- विभावका झहर उसे लगता नहीं। उसे ऐसी ज्ञायककी विद्या, ज्ञायकका मंत्र प्रगट हुआ है कि जिस कारणसे आस्रवका झहर उसे चढता नहीं।

उसने जाना कि यह आस्रव है वह विपरीत स्वभाव है, आकुलतावाले हैं, मेरा सुख इसमें नहीं है, सुख मेरेमें है, ऐसा अन्दर निश्चय हुआ। मेरा ज्ञायक स्वभाव ही सुखस्वरूप है। सब कुछ मेरे ज्ञायक स्वभावमें ही है, बाहरमें नहीं है। ऐसा उसे निश्चय हुआ और ज्ञायकका रस लगा। वह रस चढा, वह रस उसे उतरता नहीं इसलिये उसे झहर लगता नहीं। भिन्न ही (रहता है), प्रतिक्षण न्यारा ही रहता है, उससे भिन्न ही रहता है।

आत्माका रस ऐसा लगा। कहते हैं न, भगवान! मुझे ज्ञायकदेवका ऐसा रस लगा है कि उसके आगे मुझे सब तुच्छ लगता है। जैसे जिनेन्द्र भगवानका, आचार्यदेव कहते हैं न, आपका प्रभावशाली मन्त्र यदि मेरे हृदयमें है अथवा आपके स्मरणरूप मन्त्र है तो मुझे इस जगतमें मेरी चिंतीत वस्तु है, उसमें कोई विघ्न नहीं आता है। ऐसे ज्ञायकका जिसे रस लगा, ज्ञायकदेवकी विद्या प्रगट हुयी, जहाँ हो वहाँ ज्ञायककी अखण्ड