३५४ परिणति प्रगट है। प्रतिक्षण उसे ज्ञायककी परिणति मौजूद ही है। ज्ञायकके प्रभावके कारण ज्ञायकदेवका ऐसा मन्त्र उसके पास है कि उसे विभावका रस नहीं लगता है। उससे वह भिन्न ही रहता है।
ज्ञायकमें सबकुछ है। ज्ञायक चिंतामणि रत्न कहो अथवा कल्पवृक्ष कहो या जो भी कहो, सब ज्ञायकमें ही भरा है, बाहरमें कहीं नहीं है। इतना उसे ज्ञायकदेवका रस लगा है कि विभावका रस उसे टूट गया है। इसलिये वह उससे भिन्न ही रहता है। उसने मोक्षमार्गमें प्रयाण किया है। ज्ञायकका रस ऐसा लगा कि उसे दूसरे रस लगते नहीं और आस्रवका झहर उसे चढता नहीं।
मुमुक्षुः- देव-गुरुकी भक्तिको भी झहर कहना?
समाधानः- शुभभावकी अपेक्षासे कहनेमें आता है। आचार्यदेव कहते हैं, अमृतकुंभ और विषकुंभ जो प्रतिक्रमण (अधिकारमें) आता है। हम तो शुभभाव हैं उसको भी हमने तीसरी भूमिकाकी अपेक्षासे विषकुंभ कहा, तो अशुभभाव तो कहाँसे अमृत हो? हम तो ऊपर चढनेको कहते हैं, नीचे उतरनको नहीं कहते हैं। हम तीसरी भूमिकामें जानेके लिये कहते हैं कि शुभाशुभ भाव दोनों विभाव है। दोनों एक समान है। पर निमित्तसे होनेवाले मेरे स्वभावसे भिन्न हैं। इसलिये दोनों एक ही कोटिके हैं। ऐसा कहते हैं, वह तीसरी भूमिकामें निर्विकल्प दशामें तू जा और तू ऐसी सच्चा श्रद्धा कर कि ये दोनों आकुलतावाले हैं। सच्ची श्रद्धा, सच्ची परिणति अन्दरसे प्रगट कर और अमृतकुंभकी तीसरी भूमिका प्रगट करनेके लिये हम कहते हैं, परन्तु नीचे उतरनेके लिये नहीं कहते हैं। तू शुभ छोडकर अशुभमें जा, तो नीचे गिरनेको नहीं कहते हैं कि यह सब तो शुभ है, अब उसकी कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिये अशुभमें क्या हरकत है? तू शुभमें नहीं खडा रहेगा तो तेरी परिणति तो बाहर ही है, अशुभमें तो तेरी गति होनेवाली ही है। इसलिये तू तीसरी भूमिकाकी श्रद्धा रख। परन्तु वह परिणति तुझे प्रगट नहीं हो रही है तो उसकी जिज्ञासा कर, शुभभावको छोडकर तू अशुभमें जा ऐसा ऐसा आचार्यदेवको नहीं कहना है।
देव-गुरु-शास्त्र, जिन्होंने मुक्तिका मार्ग बताया है, जिन्होंने सच्चा धर्म बताया है, जो अनादि कालसे जानता नहीं था, मार्ग सूझता नहीं था, ऐसा गुरुने बताया, ऐसा शास्त्रमें आया, जिनेन्द्र देवने बताया, जो साधना साध रहे हैं, जिन्होंने पूर्णता प्राप्त की है, जो साधना करते हैं, ऐसे गुरु आत्मा कैसा हो, उसे देखनेके लिये एक आदर्श हैं, एक दर्पणरूप है, शुभभावमें स्वयंको उन पर भक्ति आये बिना नहीं रहती। स्वयं अपनेसे जानता नहीं है, परन्तु जो मार्ग दर्शाते हैं, उनकी अपूर्व परिणतिको देखनेके लिये, उसके लिये आदर्श हैं। इसलिये वह शुभभाव बीचमें आये बिना रहते नहीं। इसलिये