Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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विवेक करके रहने जैसा है। दृष्टिमें ऐसा रखे कि शुद्धभाव सर्वस्व है-शुद्धात्मा। परन्तु वह उसमें पहुँच नहीं सकता है इसलिये आये बिना नहीं रहते। अशुभभावसे बचनेको शुभ आता है।

मुमुक्षुः- विवेक करना है। समाधानः- विवेक रखना चाहिये। ... उसमें नहीं खडा रहेगा तो कहाँ जायेगा? तो अशुभमें गति-परिणतिकी गति तो चालू ही है। ऐसे नहीं होगा तो यहाँ जायेगा। इसलिये तू श्रद्धा बराबर रख कि यह सब मेरे शुद्धात्मासे भिन्न है। मेरा स्वभाव नहीं है, सब आकुलतारूप है। प्रवृत्ति है, आकुलता है, परन्तु उससे छूटकर इस ओर जायेगा तो अशुभमें जाना होगा। सांसारिक लौकिकके लिये तू कितना प्रयत्न करता है। शुभभावमें ऐसी भावना तुझे आये बिना नहीं रहेगी। क्योंकि जो सच्चा मार्ग बतानेवाले, आत्माका जो स्वरूप है उसे देखनेके लिये एक आदर्शरूप है, एक दर्पणरूप है, उनका अनादर करके इसमें जायेगा तो तुझे नुकसानका कारण होगा। व्यवहारसे आत्माकी महिमा लानेके लिये जो निमित्तरूप है, स्वयं विचार करे तो देव-गुरुकी महिमा, मेरा आत्मा कैसा है, वे क्या दर्शाते हैं, तेरे आत्माकी ओर मुडनेका एक कारण होता है। परन्तु श्रद्धा बराबर रख।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!
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